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वास्तविक समस्याएं और तनाव ३११
नहीं की जा सकती । चमत्कार तभी कहा जा सकता है जब कहीं-न-कहीं वह घटना घटित होती है । सब उसे नहीं जानते। एक-दो ही उसे जानते हैं । यही बात अंधविश्वास के लिए है । जैसे-जैसे विज्ञान के चरण आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे अंधविश्वास और चमत्कार भी वैज्ञानिक सचाइयों के रूप में बदलते चले जा रहे हैं।
मानसिक तनाव : कहां? कैसे?
वर्तमान में रोटी की समस्या, बीमारी और अशिक्षा की समस्या को समाहित करने के लिए अनगिन प्रयत्न हो रहे हैं। सभी राष्ट्र इस प्रयत्न में लगे हुए हैं कि मानव-जाति इन तीनों समस्याओं से मुक्त हो । रोटी का अभाव न रहे, बीमारी का आतंक न रहे और अशिक्षा का भूत भाग जाए। इन तीनों दिशाओं में जागतिक प्रयत्न चल रहे हैं । सारा विश्व एकजुट होकर कार्य कर रहा है । फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि रोटी मिल जाने पर भी आदमी तनाव से मुक्त हो जाएगा । किन्तु परिणाम विपरीत देखा गया है। जहां रोटी की समस्या समाहित हो चुकी है, वहां तनाव और अधिक हो गया है। स्वास्थ्य की समस्या सुलझने पर भी तनाव की समस्या सुलझ जाएगी, यह अनिवार्य नहीं है । सचाई यह है कि जहां औषधियां अधिक सुलभ हैं वहां तनाव बहुत ज्यादा है। मानसिक तनाव को मिटाने के लिए, अनिद्रा के रोग से छुटकारा पाने के लिए लोग अनगिन प्रकार की गोलियां खा रहे हैं। ज्यों-ज्यों गोलियों का प्रचार बढ़ रहा है, प्रयोग और उपयोग बढ़ रहा है, आदमी अधिक-से-अधिक तनावग्रस्त होता जा रहा है। जहां स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं हैं, चिकित्सा के प्रयोग सुलभ नहीं हैं, वहां मानसिक तनाव कम है । इन लोगों की तुलना में शतांश मात्र है । जो राष्ट्र साक्षर हैं, जहां के नागरिक अशिक्षा से मुक्त हैं, वे भी तनावग्रस्त हैं । साक्षरता होने पर तनाव मिट जाएगा, यह कल्पना हो सकती है, पूर्ण यथार्थता नहीं है । मूल है उपादान
मनुष्य का एक शाश्वत स्वभाव है। वह केवल रोटी से संतुष्ट नहीं होता । वह केवल चिकित्सा की सुविधा मिल जाने से संतुष्ट नहीं होता । वह केवल साक्षर हो जाने से सन्तुष्ट नहीं होता । इन तीनों समस्याओं के सुलझ जाने पर भी उसके अन्तःकरण में एक टीस बची रह जाती है। उसमें असंतोष की ज्वाला
कती रह जाती है। जब तक यह टीस नहीं मिटती, यह ज्वाला नहीं बुझती, तब तक तनाव नहीं मिट सकता, आदमी संतुष्ट नहीं हो सकता। वह टीस है - मूर्च्छा । वह ज्वाला है - मूर्च्छा । जब तक मूर्च्छा की चिकित्सा नहीं होगी, तब तक आदमी में संतोष नहीं आएगा। जब तक आदमी संतुष्ट नहीं होगा, तब तक वह तनाव से मुक्त नहीं होगा। कैसी विडंबना ! आज के बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक, धुरन्धर शिक्षाशास्त्री और भूख की समस्या को मिटाने वाले
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