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३०६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
भौतिक और अंत का क्षण भौतिक। सब कुछ भौतिक ही भौतिक है। फिर भौतिकता से परे हटने की कोई जरूरत नहीं है, आस्था को अभौतिक आधार देने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारी सारी आस्था भौतिकता से जुड़ी हुई आस्था होगी। इस स्थिति में अध्यात्म और अभौतिकता किसलिए? अतीत और भविष्य किसलिए? न भविष्य आवश्यक है और न अतीत।न अध्यात्म आवश्यक है और न अभौतिकता। किन्तु जब हमारी आस्था इस बात से जुड़ी होती है कि इस जीवन का मूल सूत्र भौतिक नहीं है, कोई अभौतिक सत्ता है, कोई शाश्वत चेतना सत्ता है, इस स्थिति में भौतिकता गौण हो जाती है। फिर हमारी आस्था मूल सत्ता के साथ, चेतना के साथ जुड़ जाती है। वह आस्था चेतना के परिष्कार की आस्था होती है। हाथ उठता है तो चेतना के परिष्कार के लिए उठता है। पैर उठता है तो चेतना के परिष्कार के लिए उठता है।सोना, जागना, खाना-सब कुछ चेतना के परिष्कार के लिए होता है। जीवन की सारी प्रवृत्तियां चेतना के परिष्कार के लिए होती हैं। अज्ञानी सोता है, ज्ञान जागता है
भगवान् महावीर ने कहा-सुत्ता अमुणिणो मुणिणो सया जागरतिअज्ञानी सदा सोता रहता है, ज्ञानी सदा जागता रहता है। ज्ञानी वह है जो जागता है और अज्ञानी वह है जो सोता है। ज्ञानी आदमी नींद लेते हुए भी जागता है और अज्ञानी आदमी आंख खुली रखते हुए भी सोता है। बड़ा आश्चर्य होगा। आंखें बन्द हैं। सोया पड़ा है। भान नहीं है, फिर महावीर कहते हैं-वह जाग रहा है। एक आदमी चल रहा है। आंखें खुली हैं। महावीर कहते हैं-वह सोया हुआ है। बहुत बड़ा विरोधाभास है। जागता आदमी सोया हुआ है और सोया आदमी जागा हुआ है। बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन किया है महावीर ने। जो अज्ञानी है, जिसकी आस्था केवल भौतिक सत्ता के साथ जुड़ी हुई है, वह जागते हुए भी सोया हुआ है। वैसा व्यक्ति चेतना के परिष्कार के लिए कोई काम नहीं करता। वह चेतना को मूर्च्छित करने वाले कार्य करता है। वह जो भी करता है मूर्छा में करता है, बेहोशी में करता है, सोये हुए करता है। ज्ञानी सोये हुए भी जागता है। वह चेतना के परिष्कार के लिए काम करता है। वह सब कुछ होश में करता है, मूर्छा में नहीं। वह सब कुछ जागते हुए करता है। एक बहुत बड़ी बात कही गई कि साधु खाता है, उत्सर्ग करता है, वह सब धर्म है। साधु जो कुछ करता है वह धर्म होता है। गृहस्थ खाता है, उत्सर्ग करता है, वह सब पाप है। प्रथम दर्शन में लगता है कि यह सचाई नहीं है। किन्तु इस बात को जब हम सूक्ष्म जगत् में उतरकर देखते हैं तो प्रतीत होता है कि यह एक बहुत बड़ी सचाई का उद्घाटन है। जिस व्यक्ति में चेतना के परिष्कार की भावना जाग गई, जो चेतना के परिष्कार में लग गया, जिसकी सारी ऊर्जा चेतना के
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