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२६६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
वह आटा लाना भूल गया और वैद्य को लाने दौड़ा। आगे चौथा आदमी बोला-अरे, भागे जा रहे हो । देखो, मेरी लाडली ससुराल जा रही है। उसे पहुंचाने जाना है। रेल में चार घंटे का रास्ता है। बेटी को ससुराल पहुंचाकर चले आना। सेवक ने स्वीकार कर लिया। सारे काम छोड़ वह स्टेशन की ओर चल पड़ा। उसने चार काम संभाले, पर पूरा एक भी नहीं हुआ।
प्रायः व्यक्तियों की यही स्थिति है। वे एक समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं, ध्यान दूसरी समस्या पर चला जाता है, फिर तीसरी समस्या और फिर चौथी समस्या पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है। वहां भी वह ध्यान नहीं टिकता। एक भी समस्या नहीं सुलझती। पानी सौ हाथ नीचे है तो सौ हाथ खोदने पर ही वह प्राप्त हो सकता है। दस-दस हाथ के दस गढ़े खोदने से पानी प्राप्त नहीं हो सकता। यहां गणित काम नहीं आता कि दस-दस हाथ के गढ़े खोदने से सौ हाथ हो गए। पूरे सौ हाथ एक स्थान पर खोदने से ही पानी मिल सकता है, अन्यथा दस-दस हाथ के हजार गढ़े भी खोद लो, पानी नहीं मिलेगा।
ध्यान इस समस्या को सुलझा सकता है। वह व्यक्ति को केन्द्रित होना सिखाता है। साधक ध्यान के द्वारा एकाग्रता और संकल्प-शक्ति का विकास करे और समस्याओं के समक्ष एक प्रतिरोधात्मक शक्ति खड़े करे जिससे कि चित्त समस्या से डरे नहीं, किन्तु उसके सामने एक पर्वत की भांति अचल खड़ा रह सके।
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