________________
समस्या के मूल की खोज २६३
समस्या की शक्ति के सामने खड़ी रहकर समस्या का प्रतिरोध कर सके। जब आमने-सामने दूसरी शक्ति होती है तब आक्रामक शक्ति का वेग मन्द हो जाता है। उसे सावधानी से आगे बढ़ना होता है। जब शत्रु-सेना के सामने दूसरी शक्तिशाली सेना खड़ी होती है तब उसे आगे बढ़ने का अवकाश प्राप्त नहीं होता। यदि प्रतिरोध करने वाली सेना न हो तो वह निर्भीकता से आगे बढ़ जाती है।
हमारे शरीर में जब रोग-प्रतिरोधक शक्ति प्रबल होती है तब किसी भी प्रकार के रोग के कीटाणु आक्रमण नहीं कर सकते। वे आते हैं और प्रतिरोधात्मक शक्ति से पराजित होकर भाग जाते हैं। सारा शरीर कीटाणुओं से आक्रान्त है। वे रोग पैदा कर सकते हैं किन्तु जिस व्यक्ति की रेजिस्टेन्स पॉवर-प्रतिरोधात्मक शक्ति प्रबल होती है, जिसमें रोग के कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता होती है, वह व्यक्ति रोगों से आक्रान्त नहीं होता। वह बीमार नहीं होता। जिसकी यह शक्ति क्षीण होती है, वह सहजतया बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। कुछेक लोग प्रतिश्याय या सिरदर्द से सदा पीड़ित रहते हैं। कुछेक लोग अन्यान्य भयंकर बीमारियों से दुःखी रहते हैं। क्या रोग के कीटाणु उन्हीं को सताते हैं? वे दूसरों को क्यों नहीं सताते? कीटाणु सबको सताने का प्रयत्न करते हैं। जिस-जिस व्यक्ति की प्राण-शक्ति कम हो जाती है, रोग-निवारक शक्ति क्षीण हो जाती है, उसे कीटाणु अधिक सताते हैं। जिस व्यक्ति की प्राण-शक्ति मजबूत है, उसे कीटाणु सताने का प्रयत्न करते हैं पर सता नहीं पाते। हम ध्यान के द्वारा प्राण-शक्ति को सक्षम बनाते हैं, प्रतिरोधक शक्ति की एक मजबूत दीवार खड़ी करते हैं जिससे कि कोई आक्रमण न कर सके और हमें समस्या न सता सके। शोधन की प्रक्रिया
लोह और इस्पात दो हैं। लोह कमजोर होता है और इस्पात बहुत मजबूत होता है। लोह पर जंग जमता है, इस्पात पर जंग नहीं जमता। लोह ही इस्पात में बदलता है। धातु को मजबूत करने के लिए उसे तेज तापमान दिया जाता है और जितने विजातीय कण उससे निकाल दिए जाते हैं, उतना ही वह धातु मजबूत बन जाता है। अन्तरिक्षयान के लिए लोह-धातु को बहुत मजबूत बनाया जाता है, जिससे कि वह हर झटके को झेल सके। किन्तु मजबूती तब आती है जब विजातीय कण निकाल दिए जाते हैं और मूल कण अधिक से अधिक विकसित होते हैं।
__ हमारे चित्त की भी यही प्रक्रिया है। जब चित्त में विजातीय तत्त्व ज्यादा होते हैं तब चित्त इतना कमजोर बन जाता है कि वह परिस्थिति के झटके को सहन नहीं कर सकता, तत्काल टूट जाता है। यदि उसी चित्त को ध्यान की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org