________________
२७४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
संताप का। नाना प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं। किन्तु तैजस शरीर की जो प्रतिक्रियाएं हैं, बायाइलेक्ट्रिसिटी के द्वारा जो प्रकंपन पैदा होते हैं, वे केवल सुखद होते हैं। वे अपने पीछे दुःखद परिणाम नहीं छोड़ते। जिस व्यक्ति ने इस सचाई का अनुभव नहीं किया वह इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि पदार्थों को भोगे बिना भी अपूर्व सुख का अनुभव हो सकता है।
जब पद्म-लेश्या के स्पंदन जागते हैं, पीले रंग के परमाणुओं के प्रकंपन पैदा होते हैं तब व्यक्ति को अनिर्वचनीय निर्मलता प्राप्त होती है। उसमें प्रज्ञा की निर्मलता, बुद्धि की निर्मलता और ज्ञान-तंतुओं की निर्मलता इतनी तीव्र होती है कि वह हजारों ग्रन्थों के अध्ययन से भी उपलब्ध नहीं होती। गहराई में जाने की ऐसी दृष्टि मिल जाती है कि आदमी समस्या को तत्काल सुलझाने में सक्षम हो जाता है। समस्या सुलझाने का प्रयोग
समस्या को सुलझाने का एक छोटा-सा प्रयोग करें। जब कभी समस्या आए, शान्त होकर कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठे। श्वास शांत, शरीर शांत, मांसपेशियां शिथिल, पूरा कायोत्सर्ग। दस मिनट तक करें। मस्तिष्क में पीले रंग का ध्यान करें, पद्मलेश्या का ध्यान करें। अथवा दस मिनट तक आंखें बंद कर आंखों पर पीले रंग का ध्यान करें। अथवा दस मिनट तक आनन्द-केन्द्र में अरुण रंग का ध्यान करें। ऐसा लगेगा कि समस्या बिना सुलझाए सुलझ रही है। समाधान स्वतः कहीं से उतरकर सामने आ गया है। शुक्ल लेश्या
जब शुक्ल लेश्या के प्रकंपन तीव्र होते हैं तब अनिर्वचनीय शांति प्राप्त होती है। ऐसी शांति उभरती है कि मन में कोई संताप शेष नहीं रहता। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। जब आभामंडल सफेद परमाणुओं से भर जाता है तब व्यक्ति प्रफुल्लित हो जाता है। मन में कोई विषाद नहीं रहता। कार्य का कितना ही भार हो, उसे कुछ लगता ही नहीं। उसे पर्वत-सी समस्या राई जैसी लगने लगती है। व्यक्तित्व-रूपान्तरण के घटक
तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के प्रयोग, उनसे परिष्कृत होने वाला आभामंडल और उन आभामंडलों में आने वाले वे परमाणु-ये सारे हमारे व्यक्तित्व को नया निखार और नया रूप दे देते हैं। __ लेश्या-ध्यान एक कसौटी है। सामाजिक जीवन में ध्यान करने वाले व्यक्ति की कसौटी होती है उसका व्यवहार और उसका चरित्र । ध्यान करता चला जाए और व्यवहार न बदले, चरित्र न बदले तो मानना चाहिए कि उसका ध्यान भी एक नशामात्र है। कोरा आनन्द मिलना, कोरी शांति मिलनी या तृप्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org