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चित्त-शुद्धि और लेश्या-ध्यान २६६
होती है तब व्यक्ति स्थूल शरीर से प्राण-शरीर को बाहर निकालकर घटने वाली घटना तक पहुंचाता है और घटना का ज्ञान कर लेता है। यह प्राण-शरीर बहुत दूर तक जा सकता है। इसमें अपूर्व क्षमताएं हैं।
समुद्घात सात हैं-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवली समुद्घात। जब व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है तब उसका प्राण-शरीर बाहर निकल जाता है। यह कषाय समुद्घात है। जब आदमी के मन में अति लालच आता है तब भी प्राण-शरीर बाहर निकल जाता है। इसी प्रकार भयंकर बीमारी में, मरने की अवस्था में भी प्राण-शरीर बाहर निकल जाता है। आज के विज्ञान के सामने ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई हैं।
एक रोगी ऑपरेशन थियेटर में टेबल पर लेटा हुआ है। उसका मेजर ऑपरेशन होना है। डॉक्टर ऑपरेशन कर रहा है। उस समय उस व्यक्ति में वेदना समुद्घात घटित हुई। उसका प्राण-शरीर स्थूल शरीर से निकलकर ऊपर की छत के आसपास स्थिर हो गया। ऑपरेशन चल रहा है और वह रोगी अपने प्राण-शरीर से सारा ऑपरेशन देख रहा है। ऑपरेशन करते-करते एक बिन्दु पर डॉक्टर ने गलती की। तत्काल ऊपर से रोगी ने कहा, 'डॉक्टर! यह भूल कर रहे हो।' डॉक्टर को पता नहीं चला-कौन बोल रहा है। उसने भूल सुधारी। वेदना कम होते ही रोगी का प्राण-शरीर पुनः स्थूल शरीर में आ जाता है। प्रोजेक्शन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। होश आने पर रोगी ने डॉक्टर से कहा, 'छत पर लटकते हुए मैंने पूरा ऑपरेशन देखा है।'
शरीर-प्रक्षेपण की अनेक प्रक्रियाएं हैं। इन प्रक्रियाओं में प्राण-शरीर बाहर चला जाता है। उस हब्शी महिला लिलियन ने कहा, 'मैं एस्ट्रलप्रोजेक्शन के द्वारा यथार्थ बात जान लेती हूं। मैं लोगों के आभामंडल में प्रविष्ट होकर उनके चरित्र का वर्णन कर सकती हूं। किन्तु शराबी आदमी के चरित्र को मैं नहीं जान सकती, क्योंकि शराबी आदमी का आभामंडल अस्त-व्यस्त हो जाता है। वह इतना धुंधला हो जाता है कि उसके रंगों का पता ही नहीं चलता।'
हमारी भावनाएं, हमारे आचरण आभामंडल के निर्माता हैं। जब अच्छी भावनाएं और पवित्र आचरण होता है तब आभामंडल बहुत सशक्त और निर्मल होता है। भावधारा मलिन होती है और चरित्र भी मलिन होता है तब आभामंडल धूमिल, विकृत और दूषित हो जाता है। भामंडल और आभामंडल
दो शब्द हैं। एक है भामंडल और दूसरा है आभामंडल। ऑकल्ट साइन्स (Occult-Science) में भामंडल को हॅलो (Hallow) कहते हैं। यह सिर के पीछे होता है। आज भी जो अवतारों के चित्र मिलते हैं, बड़े व्यक्तियों के चित्र
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