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चित्त-शुद्ध आर लश्या-ध्यान २६७
नहीं छोड़ा और तब तक नहीं छोड़ेगा, जब तक जीव बंधनों से सर्वथा मुक्त नहीं हो जाएगा। ये दोनों शरीर अमर हैं।
जब हम तैजस शरीर में प्रवेश करते हैं तब हमारा चिन्तन बदल जाता है, भावधारा बदल जाती है। भावों का सारा निर्माण इस तैजस शरीर या विद्युत् शरीर की सीमा में होता है। हमारे भाव बनते हैं, अच्छे होते हैं, बुरे होते हैं, वे सब तैजस शरीर की सीमा में होते हैं। तैजस शरीर के आस-पास सारी घटनाएं घटित होती हैं। वे घटनाएं और भाव स्थूल शरीर में उतरते हैं और हमारे ग्रंथि संस्थान, हमारे स्नायु-मंडल को प्रभावित करते हैं। फिर वे हमारे आचरण में आते हैं। मनुष्य के आचरण और व्यवहार का अध्ययन नाड़ी-मंडल और ग्रंथि-संस्थान के आधार पर नहीं किया जा सकता। उसका अध्ययन किया जा सकता है तैजस शरीर के आधार पर, लेश्याओं और भावतंत्र के आधार पर। प्रकाश ही है रंग
हम जब इस स्थूल शरीर की सीमा से पार जाकर देखते हैं तो हमें विचित्र रंग दिखाई देते हैं। विचारों को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले दो तत्त्व हैं-शब्द और रंग। मनुष्य इन दोनों से अत्यधिक प्रभावित होता है। दो इन्द्रियां-चक्षु और श्रोत्र आदमी पर प्रभाव डालती हैं। हमारे आस-पास रंगों का वलय बना हुआ है। हमारे भीतर रंगों का वलय बना हुआ है। आप देखें। आंखों को बंद करें। दर्शन-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करें। थोड़े समय में ही रंगों के बिन्दु दीखने लग जाएंगे। आंख को मूंदकर दबाएं और देखें, प्रकाश के बिन्दु और रंगीन बिन्दु आस-पास चक्कर लगाते हुए दीख पड़ेंगे। सर्वेन्द्रिय-संयम मुद्रा करें। आंखों के सामने रंग ही रंग दीख पड़ेंगे। ये रंग हमारे भीतर हैं। तैजस शरीर रंगों का शरीर है। प्रकाश और रंग दो नहीं हैं, एक ही हैं। प्रकाश का उनचासवां प्रकंपन ही रंग होता है। एक फ्रिक्वेन्सी में प्रकाश रंग बन जाता है। सूर्य की किरणों में सभी मूल रंग हैं। जहां तैजस है, प्रकाश है, वहां रंग है। प्रकाश और रंग दोनों साथ-साथ होते हैं। हमारा तैजस शरीर प्रकाश का शरीर है, रंगों का शरीर है। उसमें सभी रंग विद्यमान हैं। रंग हमारे सामने आते रहते हैं। यदि कोई द्रष्टा हो, जिसके चक्षु निर्मल हों, जिसे दृष्टि उपलब्ध हो, वह सामने दीखने वाले रंगीन बिन्दुओं के आधार पर जान लेता है कि किस प्रकार का भाव निर्मित हो रहा है और अब कौन-सी वृत्ति अभिव्यक्त होगी। इन रंगों के आधार पर जाना जा सकता है कि हमारे आस-पास में किस प्रकार के परमाणु अधिक मात्रा में आंदोलित हो रहे हैं, चक्कर लगा रहे हैं। समूचा स्वरोदय का सिद्धांत इन बिन्दुओं के आधार पर चलता है। बिन्दुओं को देखकर स्वर-साधक जान जाता है कि अब पृथ्वी तत्त्व चल रहा है, जल तत्त्व चल रहा है या अग्नि तत्त्व चल रहा है।
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