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चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा २६१ के साथ-साथ शक्ति जागे तो स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा की खोली उस पर चढ़ा दी जाए, जिससे कि वह खतरनाक न बने और उसका ठीक उपयोग हो सके। वह हमारे काम आती रहे। अहंकार का उफान और शमन
विचय-ध्यान करने वाला, विचार का ध्यान करने वाला अनुप्रेक्षा को कभी नहीं छोड़ सकता। ध्यान के साथ कुछ शक्तियां प्राप्त होती हैं, कुछ लब्धियां प्राप्त होती हैं, कुछ विभूतियां प्राप्त होती हैं, तब अहंकार के जागने की बहुत बड़ी संभावना बन जाती है। शक्तिप्राप्त व्यक्ति सोचता है-यह शक्ति मेरे में है, दूसरों में नहीं-यह चेतना जागते ही उसका अहंकार उफनने लगता है। यदि सबको वह शक्ति उपलब्ध होती तो उसमें अहंकार नहीं जागता। जब कुछ अतिरिक्तता होती है तब अहंकार को जागने को अवकाश मिल जाता है।
दो साधक मिले। एक ने कहा-चलो, आज पानी पर बैठकर चर्चा करें। उसे पानी पर बैठने की शक्ति प्राप्त थी। दूसरा साधक भी शक्ति-सम्पन्न था। उसने कहा-पानी पर क्या बैलें, चलो, आज आकाश में अधर बैठकर चर्चा करें। उसे आकाश में बैठने की शक्ति प्राप्त थी। पहले साधक का अहंकार कुछ ठंडा पड़ा, क्योंकि पानी पर बैठने से आकाश में बैठना बड़ी बात थी। दूसरे साधक का अहंकार फुफकार उठा। इतने में ही एक अध्यात्म योगी उधर आ निकला। उसने दोनों की बात सुनी। उसने कहा-एक मछली भी पानी में तैरती है, बैठती है। यह तो मामूली बात है। मक्खी आकाश में उड़ती है। अधर रह जाती है। इसमें क्या अनोखापन है? पानी पर बैठना या आकाश में अधर रहना कोई महत्त्व की बात नहीं है। मछली और मक्खी का जीवन मत जीओ। साधना की सही दिशा में चलो। अध्यात्म को उपलब्ध करो, अपने कषायों और मलिनताओं को दूर करो, अशुद्धियों को समाप्त करो। अन्यान्य लब्धियां महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। वे साधना के साथ स्वयं उपलब्ध होती है।
अहंकार से बचने का एकमात्र उपाय है-अनुप्रेक्षा। जो व्यक्ति ध्यान के साथ-साथ अनित्य अनुप्रेक्षा का प्रयोग आरम्भ कर देता है, उसमें अहंकार जागने की संभावना कम हो जाती है। यदि अहंकार जागता भी है तो शांत हो जाता है। क्रोध आता है तो वह टिक नहीं पाता, अपने आप विलीन हो जाता है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को इन अनुप्रेक्षाओं का बार-बार आलंबन लेना चाहिएअनित्य अनुप्रेक्षा
यह शरीर अनित्य है। यह यौवन अनित्य है। शरीर की सुंदरता का अभिमान हो सकता है। यौवन का अभिमान हो सकता है। यह परिवार का संयोग अनित्य है। अपने परिवार का अभिमान हो सकता है। यह वैभव, यह संपदा अनित्य है। संपदा का अहंकार हो सकता है। इष्ट का संयोग भी अनित्य है। और क्या?
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