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२६० अप्पाणं सरणं गच्छामि
है, मुझे ज्ञान उपलब्ध हुआ है, मैं अज्ञानी नहीं हूं, क्रोध को देखकर क्रोध नहीं करूंगा, यदि करूंगा तो अज्ञानी बन जाऊंगा-उन्हें दूसरा आलंबन प्राप्त हो जाता है। ३. मैं मूर्ख नहीं
क्रोध करना मूर्खता का लक्षण है। क्रोध करने वाला मूर्ख होता है। समझदार आदमी कभी क्रोध नहीं करता। समझदार आदमी कारण को खोजता है, क्रोध के प्रति क्रोध नहीं करता। जो व्यक्ति कारण की खोज में लग जाता है, वह क्रोध की ओर कम जाता है, कारण तक पहुंचने का प्रयत्न करता है। साधक इन आलंबन सूत्रों को पुष्ट करे-मैं मूर्ख नहीं हूं। मूर्खता मेरा स्वभाव नहीं है। ४. दोष मेरा ही है
मैं सबके साथ सद्-व्यवहार करता हूं, किसी का प्रतिवाद नहीं करता, फिर भी कोई व्यक्ति मेरे व्यवहार से कुपित होता है तो यह मेरे पूर्वकृत कर्म का ही फल हो सकता है। कोई ऐसा विपाक है, मेरे स्वरों में या शब्दों के व्यवहार में ऐसी कोई कमी है कि सामने वाला कुपित हो जाता है। दोष दूसरों का नहीं है, मेरा ही है। इस आलंबन के आधार पर वह गुस्से से बच जाता है। ५. आग हाथ जलाती है
जो क्रोध करता है, उसका मन रुग्ण हो जाता है। क्षमा करने वाले का चित्त स्वस्थ रहता है। यह सचाई जब समझ में आ जाती है तब क्रोध की जड़ पर तीव्र प्रहार होता है। जिसने यह स्पष्ट रूप से जान लिया कि आग में हाथ डालने से हाथ जल जाते हैं, वह व्यक्ति कभी आग में हाथ नहीं डालेगा। जिस व्यक्ति की चेतना में इस सचाई का स्पष्ट अवतरण हो जाए कि क्रोध करने वाले का चित्त रुग्ण होता है, मन मलिन होता है, रक्त विषैला बनता है, भयंकर बीमारियां उत्पन्न होती हैं, वह व्यक्ति क्रोध का कभी पालन-पोषण नहीं करेगा। यह पांचवां आलंबन है।
सहिष्णुता के ये पांच पुष्ट आलंबन हैं। शक्ति पर खोल चढ़ा दो। __ध्यान की साधना के साथ जब शक्ति जागती है तब क्रोध भी उभरता है, किंतु स्वाध्याय और अनुप्रेक्षा करने वाला व्यक्ति यह जान लेता है कि क्रोध आने पर किन-किन आलंबनों का सहारा लेना चाहिए। वह उन पुष्ट आलम्बनों का सहारा लेता है और क्रोध पर एक इन्सुलिन चढ़ा देता है। शक्ति पर एक खोली चढ़ा देता है। शक्ति पर खोली हो तो फिर वह खतरनाक नहीं बनती। यदि उस पर कोई खोली नहीं होती तो शक्ति शक्ति है, वह जला भी सकती है, मार भी सकती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि जब ध्यान की साधना
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