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________________ चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग २५३ सहयोग न मिलने पर सहयोग लेने का कोई रास्ता निकालना पड़ता है। __पिता बूढ़ा हो गया। पिता ने मूर्खता यह की कि सारी सम्पत्ति बेटों को सौंप दी, हाथ में कुछ भी नहीं रखा। यद्यपि उदारता की बात है कि पिता अपने बेटों को सब कुछ सौंप दे, किन्तु दुनिया का नियम भी जानना चाहिए। सब जगह धर्म का नियम नहीं चलता। सब जगह अध्यात्म का नियम नहीं चलता। व्यवहार के अपने नियम होते हैं। व्यवहार का यह नियम होता है कि जब तक कुछ पास में होता है, तब तक मक्खियां भनभनाती हैं और पास में कुछ नहीं होता तब फिर मक्खियां भी दूर चली जाती हैं। लड़कों ने सेवा बन्द कर दी। बड़ा दुःखी हो गया बूढ़ा। एक स्वर्णकार था मित्र। वह आया। उसने पूछा-क्या स्थिति है? बूढ़े ने कहा-स्थिति विकट है। कोई भी पूछता नहीं है। उसने कहा-चिन्ता मत करो। उपाय करूंगा। दो-चार दिन के बाद वह आया। एक पेटी लाया। सिरहाने रख दी। वह स्वर्णकार बूढ़े पिता के पास आया तब छोटा लड़का भी वहां आ पहुंचा। पेटी को देखकर वह बोला- 'यह क्या है?' 'यह रत्नों की पेटी है। 'रत्नों की पेटी कहां थी इतने दिन?' स्वर्णकार ने कहा- 'मेरे पास रखी हुई थी। मैंने सोचा-सेठजी बूढ़े हो गए, चल-फिर नहीं सकते। मेरे पास पड़ी रह जाएगी। आज लाकर यह सौंप दी लड़कों ने कहा-'हमें सौंप दीजिए। ये क्या करेंगे?' स्वर्णकार बोला-'नहीं, यह तुम्हें नहीं मिलेगी। सेठजी के पास रहेगी, मेरे मित्र के पास रहेगी, इनके सिरहाने ही रहेगी।' । वह लड़का दौड़ा-दौड़ा भाइयों के पास गया। रत्नों की बात सुनाई। सबके मुंह में पानी भर आया। बूढ़े की सेवा प्रारम्भ हो गई। जब हमें पता चल जाए कि रत्न है तो सहयोग मिलना शुरू हो जाएगा। हम इसीलिए सहयोग नहीं कर रहे हैं कि हमें पता है कि पास में कुछ भी नहीं इस शरीर का सहयोग लेना है स्थिरता में। शरीर का काम है चंचलता। साधता नहीं करने वाला व्यक्ति स्थिरता उत्पन्न नहीं करता। रोग अनेक : दवा एक आज के डॉक्टर कायोत्सर्ग बहुत अच्छा करवाते हैं। जब किसी की हडडी टूट जाती है, पैर में पक्का प्लास्टर करते हैं। पैर का इतना अच्छा कायोत्सर्ग होता है कि सामान्य आदमी कर ही नहीं सकता। दो-तीन महीने तक पूरा कायोत्सर्ग हो जाता है। हाथ का कायोत्सर्ग, पैर का कायोत्सर्ग और कभी-कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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