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________________ चित्त-शुद्धि और शरीर-प्रेक्षा २३७ मस्तिष्क में जाते हैं, नाड़ी-संस्थान में जाकर मिलते हैं, बिन्दुओं को उत्तेजित करते हैं और उन उत्तेजनाओं के आधार पर मनुष्य का चरित्र और व्यवहार बनता है। एक आदमी शांत खड़ा है, कोई डर नहीं, कोई भय नहीं, अकस्मात् देखा-सामने डाकू आ रहे हैं, हाथ में पिस्तौल है, बन्दूक है, देखते ही घबरा जाएगा, डर जाएगा। क्यों? क्या वह डाकू से डरता है? क्या वह शस्त्र से डरता है? पिस्तौल से डरता है? बिलकुल नहीं। यह भ्रान्ति है हमारी । उससे नहीं डरता। किन्तु भय का केन्द्र उत्तेजित होता है, इसलिए डरता है। वही आदमी नींद में सोया हुआ है, पास में ही डाकू आ जाएं, पिस्तौल लिये, सामने खड़ा हो जाए, कोई भय नहीं होगा। जब तक भय का केन्द्र उत्तेजित नहीं होता, भय नहीं होता। डाकू की उपस्थिति से भय नहीं है। शस्त्र की उपस्थिति से भय नहीं होता, किन्तु भय के केन्द्र के उत्तेजित हो जाने पर भय होता है। जब भय होता है, भय का बिन्दु उत्तेजित होता है, यह अभिवृक्क ग्रन्थि सक्रिय हो जाती है, अधिक स्राव करती है और आदमी नाना प्रकार की चेष्टाएं करने का, प्रहार करने का प्रयत्न करता है, अधिक शक्ति बटोर लेता है। यह सारी प्रक्रिया पूरी होती है हमारे शरीरगत आन्तरिक हेतुओं से। ये हेतु हैं-नाड़ी-संस्थान में रहे हुए रसायन और विद्युत्-प्रवाह। ये जो सारे परिवर्तन होते हैं, इन परिवर्तनों को जाने बिना हम कैसे साधना में आरोहण कर सकते हैं? कैसे इन चरित्र और व्यवहार में आने वाले दोषों से बच सकते हैं? प्रतिक्षण परिवर्तन परिवर्तन समूचे जगत् का स्वभाव है। जगत् में जितने तत्त्व हैं, जितने द्रव्य हैं, जितने पदार्थ हैं, उनमें तीन प्रकार के धर्म होते हैं-उत्पन्न होना, नष्ट होना और अस्तित्व में स्थिर रहना। प्रत्येक पदार्थ अपने अस्तित्व में स्थिर है। किन्तु स्थिर होते हुए भी अस्थिरता का चक्र बराबर चल रहा है। उत्पन्न भी हो रहा है, नष्ट भी हो रहा है। बदल रहा है। कितना बदलता है? जैन दर्शन ने इस विषय पर बहुत सूक्ष्म विवेचन किया है। हर पदार्थ प्रति समय बदल जाता है। समय एक बहुत छोटा काल-माप है। एक आंख मूंदते हैं, खोलते हैं, असंख्य समय बीत जाते हैं अर्थात् आंख के एक निमेष में और उन्मेष में हर पदार्थ असंख्य बार बदल जाता है। आश्चर्य न करें। आज का विज्ञान भी सूक्ष्मता में जा रहा है। समाचार पत्र में पढ़ा कि ब्रिटेन में एक कैमरा विकसित हो रहा है, उसकी खोज हुई है। वह एक सेकंड में साठ करोड़ फोटो ले सकेगा। उस कैमरे में यह क्षमता है कि एक-बटा-दो हजार करोड़वें हिस्से में होने वाले परिवर्तन को वह पकड़ सकेगा। आश्चर्य है, हमारा जगत् कितना सूक्ष्म है, कितना बदलता है। आदमी सोचता है--मैं कुछ बदला ही नहीं, कुछ नहीं बदला। हर क्षण में कितना बदल जाता है आदमी, कुछ पता ही नहीं चलता। प्रतिपल बदल रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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