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२३० अप्पाणं सरणं गच्छामि
प्राण और श्वास
प्राण और श्वास का गहरा संबंध है। श्वास के बिना प्राण काम नहीं करता। प्राण के लिए श्वास अनिवार्य है। शरीरशास्त्र का प्रतिपादन है कि श्वास के साथ यदि प्राणवायु (ऑक्सीजन) नहीं जाता तो कुछ भी काम नहीं होता। फेफड़ा रक्त की शुद्धि इसी प्राणवायु के आधार पर करता है। कोशिकाएं ऊर्जा उत्पन्न करती हैं, विद्युत् पैदा करती हैं, वह भी ऑक्सीजन के आधार पर होता है। मस्तिष्क की सक्रियता भी प्राणवायु के आधार पर होती है। जब ऑक्सीजन मिलता है तब शरीर का छोटा-बड़ा प्रत्येक अवयव क्रियाशील होता है। यदि कुछ क्षणों के लिए भी ऑक्सीजन न मिले तो आदमी मूर्छित हो जाता है, मूर्च्छित समाधि में चला जाता है। प्राण को काम करने के लिए ऑक्सीजन चाहिए। वह प्राप्त होता है श्वास से। श्वास के साथ-साथ प्राणवायु भीतर जाता है। यदि कोई श्वास न ले तो प्राणवायु भीतर नहीं जा सकता। प्राणवायु के अभाव में प्राणशक्ति काम नहीं कर सकती। ईंधन के बिना मशीन नहीं चलती। अकेला श्वास समूचे शरीर की मशीनरी को संचालित करने के लिए ईंधन देता है। यही एकमात्र स्रोत है। दूसरा कोई स्रोत नहीं जो शरीर-तंत्र को ईंधन की पूरी सप्लाई कर सके। हमारे जीवन का मूल्य है श्वास।
प्रश्न होता है कि श्वास जीवन का मूल्य है तो उससे साधना का क्या संबंध है? हमें साधना की दृष्टि से ही इसकी चर्चा करनी है। जीवन की दृष्टि से डॉक्टर अच्छी चर्चा प्रस्तुत कर सकता है। चंचलता के दो हेतु
समाधि की दृष्टि से श्वास का क्या मूल्य है? श्वास से प्राण संचालित होता है, चंचलता बढ़ती है। चंचलता के दो हेतु हैं--श्वास और मोहकर्म का विपाक । श्वास बाहरी कारण है और मोहकर्म का विपाक भीतरी कारण है। जब भीतर में मोह के परमाणु सक्रिय होते हैं तब चित्त की चंचलता बढ़ जाती है। यह चंचलता नाड़ी-संस्थान में अभिव्यक्त होती है। नाड़ी-संस्थान के बिना कर्मजनित चंचलता अभिव्यक्त नहीं हो सकती। मूर्छा कितनी ही हो, वह इस माध्यम के बिना प्रकट नहीं हो सकती। बिजली का वोल्टेज कितना ही हो, प्रकाश की अभिव्यक्ति बल्ब के बिना नहीं हो सकती। विद्युत् का प्रवाह तारों में गतिशील है परन्तु इस कांच की दीपिका के बिना वह प्रकट नहीं हो सकता। भीतर मोह के परमाणु कितने ही सक्रिय हों, उत्तेजित हों, किन्तु यदि नाड़ी-संस्थान में चंचलता नहीं है तो उनकी चंचलता प्रकट नहीं होगी। नाड़ी-संस्थान की चंचलता के लिए प्राण का चंचल होना जरूरी है और प्राण की चंचलता के लिए श्वास का चंचल होना जरूरी है। सारा संबंध जुड़ता है श्वास के साथ।
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