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केवल-दर्शन की साधना २०५
हूं'। 'मैं कौन हूं-यह प्रश्न आज तक लाखों-लाखों व्यक्तियों ने पूछा है, अतीत में भी पूछा है, वर्तमान में लाखों व्यक्ति पूछते जा रहे हैं और भविष्य में लाखों-लाखों व्यक्ति पूछेगे। 'मैं कौन हूं?' 'मैं कहां से आया हूं?' 'मैं कहां जाने वाला हूं?' इस प्रश्न का उत्तर आज तक कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दे सका, न बता सका और न कोई बता पाएगा। चाहे महावीर आ जाएं, चाहे बुद्ध आ जाएं, 'मैं कौन हूं'-इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे सकते। इस प्रश्न का उत्तर व्यक्ति अपने आप पा सकता है। अपने दर्शन की अवस्था में और निर्विकल्प चेतना के क्षणों में पा सकता है। इसके सिवाय इस प्रश्न का उत्तर देने का और कोई दूसरा माध्यम नहीं हो सकता, कोई उपाय नहीं हो सकता।
'है' है। फिर 'मैं हूं', 'मैं कौन हूं?' 'तुम कौन हो?' 'यह कौन है?' इन सबका उत्तर मिलेगा 'है' की चेतना बलवान् बनने पर। ___ महाकवि गेटे रात को बगीचे में घूम रहे थे। चौकीदार आया। देखा, काफी रात चली गई है। सोचा, कौन घूम रहा है? कोई चोर होगा, और तो कौन आएगा इस समय? जाकर पूछा, 'तुम कौन हो?' कवि था, दार्शनिक था। ऐसा प्रश्न सामने आ गया-'तुम कौन हो?' बोला-समूचा जीवन बीत गया इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए, अभी मैं नहीं बता सकता कि 'मैं कौन हूं।
पचास वर्ष नहीं, सौ जन्मों का पूरा सत्र बीत जाए तो भी, "मैं कौन हूं', इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सकता। इस प्रश्न का उत्तर दूसरा नहीं दे सकता
और बाहर से आ नहीं सकता। इस प्रश्न का उत्तर भीतर से ही आ सकता है। कोई सोता ऐसा फूट जाए, कोई ऐसा स्रोत, झरना आ जाए कि पानी निकल जाए, तो ही पानी निकल सकता है। बाहर का डाला हुआ पानी उतना ही होता है। जितना डालो, उतना निकाल दो। उतना नहीं, थोड़ा कम ही निकलेगा। कुछ भाग कम रहेगा। यह प्रश्न उत्तरित होने के लिए बहुत शक्ति चाहता है। जब चेतना की शक्ति घनीभूत हो जाती है, चेतना की शक्ति केन्द्रित हो जाती है, तब एक विस्फोट होता है, एक सोता फूटता है। उसमें से इसका सहज उत्तर निकल आता है। यह तब होता है जब यह अस्तित्व की शक्ति, निर्विकल्प चेतना की शक्ति घनीभूत हो जाती है और वह जब घनीभूत होती है तो अपने आप इसका उत्तर मिलता है कि 'मैं कौन हूं?' प्रेक्षा है संतुलन
इसीलिए ज्ञान-चेतना के साथ-साथ दर्शन की चेतना को विकसित करना जरूरी है। इसीलिए विचार-चेतना के साथ-साथ प्रेक्षा की चेतना को विकसित करना जरूरी है। जिस व्यक्ति ने कोरा ज्ञान का जीवन जीया, जिस व्यक्ति ने कोरा स्मृति और कल्पना का जीवन जीया, उसने जीवन का वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया; अपनी कठिनाइयों, समस्याओं को सुलझाने का सूत्र उसके
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