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________________ १६६ अप्पाणं सरणं गच्छामि कोई मुझसे बड़ा बन जाए, यह किसी को पसन्द नहीं है। हर व्यक्ति दूसरे को नीचे रखना चाहता है। अपने कन्धे के बराबर कोई दूसरा कन्धा मिलाए, वह उसे अच्छा नहीं लगता। कन्धा थोड़ा नीचे रहे तो संतोष होता है, अच्छा लगता है। अपना मकान सबसे ऊंचा रहे। अपनी मोटर-कार सबसे बड़ी रहे। अपना घर सबसे बड़ा रहे। अपने कपड़े सबसे बढ़िया रहें यानी अपनी हर बात सबसे ऊंची रहे और दुनिया यह माने कि यह सबसे बड़ा आदमी है तब बड़ा संतोष का अनुभव होता है। और जब यह बात आ जाए कि सब बराबर, तो ऐसा लगता है कि जीने और मरने में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धन कमाया या नहीं कमाया, कोई सार नहीं है। जब सब बराबर, तब फिर मतलब ही क्या रह गया? यह धन की सारी लालसा, वैभव बढ़ाने की कामना, पदार्थ जुटाने की भावना और सबसे मूल्यवान् वस्तु खरीदने की कामना इसलिए है कि मैं अकेला दीखू, अकेला चमकू। सबको ऐसा लगे कि यह सबसे बड़ा आदमी है। कवि ने कहा-'सूर्य! तू मुझे अच्छा नहीं लगता। सूर्य ने कहा-'अरे भई, क्यों नहीं लगता? क्या मैं प्रकाश नहीं करता? सारी दुनिया का अंधकार नहीं मिटाता? क्या मैं सोये पड़े मनुष्यों को जगा नहीं देता? फिर क्यों नहीं अच्छा लगता?' उसने कहा- 'मैं मानता हूं, तुम अंधकार को मिटाते हो। तुम मनुष्यों के भय को मिटाते हो, तुम नींद से उठाते हो और जागरण देते हो, फिर भी तुम अच्छे नहीं लगते।' 'अरे! फिर मैं क्या दूं? इतना बड़ा काम करने पर भी मैं अच्छा नहीं लगता?' उसने कहा-'बिलकुल अच्छे नहीं लगते। क्योंकि तुम अपने सारे जाति-भाइयों को दबाकर केवल अकेले चमकना चाहते हो। सारे तारों, ग्रहों, नक्षत्रों, पूरे सौरमंडल को, इस नक्षत्र परिवार को अस्त कर, आकाश में केवल अकेले चमकना चाहते हो। इसलिए अच्छे नहीं लगते।' मनुष्य की प्रकृति है कि वह दूसरों को हेठा कर, नीचा कर, दबा कर, छिपा कर, अपने से हीन, कमजोर बनाकर केवल अकेला बढ़ना चाहता है। यह मनोवृत्ति नहीं मिटती तब तक हमारी शक्ति असीम नहीं हो सकती, निधि नहीं हो सकती, शक्ति का अवरोध समाप्त नहीं हो सकता। चैतन्य है, आनन्द है और शक्ति है। चैतन्य पर आवरण है। आनन्द पर बाधा है और शक्ति पर अवरोध है। ये तीनों उसके विघ्न हैं। इन विनों को मिटाने के लिए समाधि की साधना जरूरी है। जब हम समाधि की साधना करते हैं-केवल जानते हैं, केवल देखते हैं, प्रियता और अप्रियता के संवेदन से मुक्त होते हैं, दूसरों के हितों को क्षति नहीं पहुंचाते, दूसरों के हितों में बाधा-विघ्न नहीं डालते, तब हमारा चैतन्य अनावृत होता है, आनन्द अनाबाध होता है और शक्ति अवरोधशून्य होती है। इसकी साधना ही समाधि की साधना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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