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________________ समाधि आर प्रज्ञा १८. १ उसमें परमार्थ की वृत्तियों का जागरण होता है। इस स्थिति में अतिचेतना जागती है । जब अतिचेतना जागती है तब सारे संघर्ष, उन्माद, पागलपन समाप्त हो जाते हैं । अतिचेतना को जगाने का प्रयत्न किए बिना मनुष्य जाति के कल्याण का आज कोई मार्ग मुझे दिखाई नहीं देता । प्रज्ञा के जागरण का चरम - बिन्दु है अतीन्द्रिय चेतना का जागरण, अतीन्द्रिय ज्ञान का जागरण । उस भूमिका तक जाने की बात अच्छी लगती है । अतीन्द्रिय चेतना की भूमिका में पहुंच जाने के पश्चात् आंख खोलने की जरूरत नहीं। जानना है, आंख बन्द है, फिर भी जान लिया जाता है। सुनने की जरूरत नहीं, इन्द्रियों की जरूरत नहीं, मन की जरूरत नहीं, कोई जरूरत नहीं । सब कुछ साक्षात् हो जाता है । ऐसा पर्दा हटता है कि सब कुछ प्रतिबिम्बित हो जाता है । शक्तियों को झेलने की क्षमता आवश्यक अतीन्द्रिय चेतना की चरम भूमिका की बात बहुत सुहावनी और आकर्षक लगती है। किन्तु मैं, उस आकर्षण में, उस प्रलोभन में, भी आपको ले जाना नहीं चाहता। आप एकदम अतीन्द्रिय चेतना के जागरण की बात न सोचें । क्रम से चलें । क्रम से चलना होता है । छलांग में बड़ा खतरा होता है । हमारा एक निश्चित क्रम हो । वह क्रम है साधना के अभ्यास का क्रम । क्रम यह है - सबसे पहले अलौकिक चेतना जागे । फिर अतिचेतना जागे। तीसरी भूमिका में फिर अतीन्द्रिय चेतना को जगाने की बात करें। आज आपको सीधा जाति - स्मरण का सूत्र बताऊं, साधना बताऊं। पर आपको पता है कि - स्मरण का ज्ञान होना, पूर्वजन्म की स्मृति होना असंभव बात नहीं है, किन्तु उसे झेलना कितना कठिन है? यदि झेलने की क्षमता नहीं है और ज्ञान हो गया, पता नहीं क्या हो जाएगा। बिजली का तार बहुत कमजोर है और बिजली का वोल्टेज बहुत ज्यादा है तो क्या होगा ? फ्यूज हो जाएगा। सहन नहीं कर पाएगा वह । शक्ति के अवतरण को झेलने की क्षमता भी होनी चाहिए। आदमी के नाड़ी संस्थान में, मस्तिष्क में, ज्ञान-तन्तुओं में शक्ति को झेलने की क्षमता यदि नहीं है और शक्ति जाग गई तो वह आदमी पागल बन जाएगा। जैसे बहुत बुरी आदतों से, क्रोध, अभिमान आदि की प्रचुरता से आदमी विक्षिप्त बनता है, पागल बनता है वैसे ही शक्ति के जागरण से भी आदमी पागल बन जाता है । इसीलिए शक्ति को एक साथ जगाने की बात कभी नहीं सोचनी चाहिए। बहुत बड़ा खतरा है । क्रम होता है। कुछ लोगों में बड़ी त्वरता होती है कि आज ही बता दें, आज ही बताएं । न जाने मेरे पास कितने भाई आए कि लेश्या का ध्यान करा दें, रंगों का ध्यान करा दें । मैंने कहा- मौसम अनुकूल नहीं है । भयंकर गर्मी है। अभी अगर लेश्या का ध्यान कराया तो सारे दिन मेरे पास शिकायतें आएंगी कि शरीर में आग लग रही है, शरीर टूट रहा है, फट रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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