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१८० अप्पाणं सरणं गच्छामि
चला गया। मित्रों ने कहा कि आज आपका गुलाम भाग गया। खोज करें। महान् दार्शनिक ने कहा-क्यों, किसलिए? मित्रों ने कहा-गुलाम के बिना काम कैसे चलेगा? उन्होंने कहा-मेरा गुलाम भी भाग गया। उसे यह भी चिन्ता नहीं कि मेरा काम कैसे चलेगा तो मुझे क्यों चिन्ता हो? अगर मुझे यह चिन्ता हो, इसका अर्थ हो गया कि मैं गुलाम का भी गुलाम बन गया। यह मैं नहीं कर सकता। ___ आज हमारे जीवन की स्थिति यह है कि हम गुलाम के भी गुलाम बने हुए हैं। जब तक जीवन में समाधि का सूत्र उपलब्ध नहीं होता, यह गुलामी कभी समाप्त नहीं हो सकती और हम अपनी सम्पदा के स्वामी कभी नहीं बन सकते। जब समाधि का अवतरण होता है, मनुष्य अपनी सम्पदा का स्वामी बन जाता है, फिर किसी का गुलाम नहीं रहता, कभी नहीं रहता। ये सारी घटनाएं अलौकिक चेतना के जागने पर होती हैं। समाधि है प्रज्ञा का जागरण
समाधि का बहुत बड़ा लाभ है-प्रज्ञा का जागरण। उसका आदि-बिन्दु होता है-अलौकिक चेतना का जागरण । उसका मध्य-बिन्दु होता है अतिचेतना का जागरण । आज की पीढ़ी को, समूची मनुष्य जाति को इस लौकिक चेतना से हटकर, अलौकिक चेतना की दिशा में प्रस्थान करने की जरूरत है। अलौकिक चेतना के जागे बिना बहुत बड़ा खतरा वर्तमान के संसार में प्रस्तुत हो रहा है। आज केवल योगी के लिए समाधि की चर्चा नहीं है। आज ध्यान केवल योगी के लिए और एकान्त में, गुफा में बैठकर साधना करने वाले के लिए नहीं है। किन्तु आज वैज्ञानिक मारक और संहारक आविष्कारों के बाद यह ध्यान और समाधि प्रत्येक गृहस्थ के लिए अनिवार्य हो गई है; अन्यथा इस मनुष्य जाति को बचाया नहीं जा सकता। यदि कोई चाहे कि मनुष्य जाति बनी रहे, समाज प्रगति की दिशा में जाए, अवनति की दिशा में न जाए, चक्का उल्टा न घूमे, तो एक ही उपाय हो सकता है कि समाधि की चेतना का जागरण हो और समाधि की चेतना के जागरण द्वारा अलौकिक चेतना और अतिचेतना का जागरण हो। जब हमारी ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा शुरू होती है तब अतिचेतना जागती है। जब हमारा चेतन-मन निष्क्रिय होता है और अन्तर्मन सक्रिय बनता है, तब अतिचेतना जागती है। ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा नहीं होती तब तक यह कामकेन्द्र सक्रिय रहता है। हमारी ऊर्जा जब काम के लिए खपती है तब संघर्ष और युद्ध का उन्माद पैदा करती है। जब मनुष्य अन्तर्यात्रा के द्वारा, सुषुम्ना के ध्यान के द्वारा अपनी ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा कराता है, कामकेन्द्र में रहने वाली ऊर्जा को ज्ञान केन्द्र में पहुंचाता है, उसकी स्वार्थ वृत्तियां समाप्त होती हैं, काम-वासनाएं कम होती हैं और नीचे ले जाने वाली वृत्तियां समाप्त होती हैं।
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