________________
चित्त-समाधि के सूत्र (२) १६६
किया है और यदि हमारी नियति है तो जीवन में कोई घटना घट सकती है
और अनायास समाधि में हम जा सकते हैं, किन्तु वह हमारे अधीन नहीं है। हमें तो वही करना चाहिए जो हमारे वश की बात है। अभ्यास करना हमारे अधीन है। हम ऐसा अभ्यास और पुरुषार्थ करें, नियति के भरोसे न बैठें, कोई ऐसा पराक्रम करें, जिससे चित्त की एकाग्रता होते-होते एकाग्रता उस बिंदु पर पहुंच जाए जहां वह तन्मयता में बदल जाए, ध्यान समाधि बन जाए, केवल चैतन्य का अनुभव शेष रह जाए और जीवन में परम आनन्द, परम चैतन्य और परम शक्ति का अवतरण हो जाए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org