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________________ चित्त-समाधि के सूत्र (२) १६७ दो आंखों को छोड़कर, यह पूरा शरीर संघ की सेवा में समर्पित करता हूं। ठोकरें लगें चाहे कुछ भी लगे।” समाधि की यात्रा शुरू हो गई। चित्त-समाधि का दूसरा कारण है-जाति-स्मृति। यह अभ्यास से नहीं होता, यह अनायास घटित हो जाता है। स्वप्न-दर्शन समाधि का तीसरा सूत्र है-स्वप्न-दर्शन। कभी-कभी ऐसा सपना आता है कि सारी उलझनें समाप्त हो जाती हैं। सपनों का बहुत बड़ा विज्ञान है। हमारे भारतीय दर्शन में, भारतीय तत्त्व-विद्या में स्वप्न पर बहुत गहरी चर्चाएं हुई हैं। आज के मनोविज्ञान ने भी स्वप्न पर गहरा अध्ययन और विश्लेषण किया है। फ्रायड से लेकर आज तक के मनोवैज्ञानिकों ने स्वप्न-विद्या पर बहुत काम किया है। स्वप्नों का बहुत विवेचन हुआ है। उनके लाभ और अलाभ पर इतनी खोजें हुई हैं पुराने जमाने में भी कि जिनका आज शायद हम भारतीय लोगों को पूरा ज्ञान भी नहीं है। यथार्थ स्वप्न आता है। कोई-कोई ऐसा स्वप्न आता है, जीवन की सारी उलझनें समाप्त हो जाती हैं, समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, अनुत्तरित प्रश्न उत्तरित हो जाते हैं, असमाहित मन समाहित हो जाता है। मन की शांति, मन की समाधि उपलब्ध हो जाती है, केवल एक स्वप्न के द्वारा। देव-दर्शन : कितना यथार्थ चित्त-समाधि का चौथा सूत्र है-देव-दर्शन । देवता दर्शन देते हैं, असमाधि दूर हो जाती है। आप इसे कल्पना न मानें। आज के लोगों ने देव-दर्शन को मात्र एक कल्पना मान रखा है। उन्हें विश्वास नहीं कि देवता भी कोई होता है, देवता भी दर्शन देता है। हमारी कठिनाई यह है कि हम इस स्थूल-चेतना, इन्द्रिय-चेतना, मनश्चेतना और बुद्धि-चेतना के द्वारा जिन सत्यों को नहीं पकड़ पाते, उन्हें अस्वीकार करने में बहुत जल्दबाजी करते हैं। इतनी जल्दबाजी सत्य के क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए। यह ठीक है कि हमें देवता का पता नहीं चलता। इसलिए नहीं चलता कि वे सूक्ष्म सत्ता में हैं, सूक्ष्म शरीर में हैं और हमारे पास सूक्ष्म को पकड़ने की बात प्राप्त नहीं है। क्या सूक्ष्म की चेतना को पकड़ने की शक्ति नहीं इसलिए अस्वीकार करते चले जाएं? पंखा चल रहा है। लाउडस्पीकर अपना काम कर रहा है। वह ध्वनि को विस्तृत कर रहा है। मुझे कहीं भी बिजली दिखाई नहीं देती। अस्वीकार कर दूं कि बिजली नहीं है? जो आंखों से दिखाई नहीं देती, अस्वीकार कर दूं कि 'बिजली नहीं है? वह आंखों से दिखाई न दे उसे अस्वीकार करते चले जायें तो सत्य के प्रति इतना घोर अन्याय होगा कि जितना अन्याय कोई कर नहीं सकता। हमारी अल्पक्षमता के कारण हम यदि सूक्ष्म तत्त्वों को न पकड़ सकें और उन्हें तत्काल अस्वीकार कर दें इससे बड़ा कोई असत्य नहीं हो सकता। यह बहुत बड़ा दुस्साहस होगा कि अपनी अक्षमता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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