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१६६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
यह सुनते ही थावच्चापुत्र को झटका लगा। उसका रोम-रोम बोल उठा-“मरना पड़ेगा।" उसने मां से पूछा-“ऐसा भी कोई उपाय है जिससे मरना न पड़े?" मां ने कहा-“भगवान् अरिष्टनेमि उपाय जानते हैं, मनुष्य अमर हो जाता है।" थावच्चापुत्र बोला-“तुम्हारा-मेरा सम्बन्ध समाप्त। मैं अरिष्टनेमि की शरण में जाऊंगा।” उसकी समाधि की यात्रा शुरू हो गई।
राजा गया बैलशाला में, जहां गायें रहती थीं, बैल रहते थे। एक बैल को देखा। तत्काल कोई चेतना दौड़ गई और राजा ने कर्मचारी को बुलाकर कहा, क्या यह वही बैल है जिसके कन्धे बड़े पुष्ट थे, बड़ा शक्तिशाली था। जब रथ पर जुतता था तो ऐसा लगता था कि बैल क्या चल रहा है, हवा ही चल रही है। क्या वही बैल है? कर्मचारी बोला-“हां, महाराज! वही बैल है।" राजा ने कहा-“यह ऐसा क्यों हुआ?" "महाराज, बूढ़ा हो गया।" राजा ने सोचा-बूढ़ा होने पर ऐसा होता है तो मुझे भी बूढ़ा होना पड़ेगा। बस, बात समाप्त । कहानी समाप्त हो गयी और समाधि की व्यवस्था जाग गई। राजा ने राजपाट छोड़कर समाधि की दिशा में प्रस्थान कर दिया। जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, धर्म की कोई ऐसी चिन्ता अचानक जाग जाती है, जो कभी नहीं जागी और आदमी सामधि की ओर प्रस्थान कर जाता है।
जब एक धक्का लगता है तब वह चेतना जाग उठती है जिससे मनुष्य की सारी जीवन-यात्रा बदल जाती है, आकर्षण बदल जाता है। वैराग्य की वह घटना घटती है और वह सीधा समाधि में चला जाता है। समाधि के लिए प्रस्थान हो जाता है। जाति-स्मृति __ समाधि का दूसरा सूत्र है-जाति-स्मृति-पूर्व-जन्म की स्मृति। आदमी उलझा रहता है। मन उलझा रहता है। बड़ी समस्या है मन की अशांति, असमाधि। उलझी हुई होती है चेतना। किन्तु कभी-कभी ऐसा अवसर आता है कि पूर्वजन्म का ज्ञान अचानक उतर आता है। जैसे ही पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ, सारी असमाधि समाप्त हो जाती है। मेघकुमार, राजा श्रेणिक का पुत्र, उलझ गया था। मुनि बना। रात को कठिनाइयां पैदा हुईं। साधु आते हैं, जाते हैं, ठोकरें लगती हैं। राजकुमार था, कभी ठोकरें नहीं खायीं। एक रात में काफी ठोकरें खा चुका। सोचा, यह क्या है। आया हूं साधना के लिए और लग रही हैं ठोकरें। बस, प्रातःकाल होते-होते महावीर के पास जाकर कहूंगा-यह लो अपना साधुत्व। मैं तो अपने महल में जाता हूं। ऐसा ही हुआ। आया, महावीर ने उसे जब पूर्वजन्म की स्मृति कराई। उसकी चेतना जाग गई। उसने पूर्वजन्म का साक्षात्कार किया, सारी बातें समाप्त हो गईं। असमाधि समाप्त, उलझनें समाप्त और समाधि की ऐसी यात्रा शुरू हुई कि उसने कहा-“भन्ते! केवल
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