________________
संयम और समाधि १२७
शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और भाव-इन छह विषयों में जीने वाला व्यक्ति बाहर में जीता है। भाव का अर्थ है-मन के भाव-क्रोध, मान, माया, कपट, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आदि। जो इन छह विषयों से हटकर जीता है वह भीतर में जीता है, भीतर में जागता है। जब व्यक्ति भीतर में जागता है, भीतर में जीता है तब समाधि अपने आप घटित होती है। ___समाधि का अर्थ है-भीतर में जागना, भीतर में जीना। असमाधि का अर्थ है-बाहर में जागना, बाहर मे जीना। मनुष्य सहज ही बाहर के प्रति जागरूक होता है क्योंकि बाहर में जितना आकर्षण है उतना भीतर में नहीं है। भीतर में आकर्षण तो बहुत है, परन्तु आदमी उससे परिचित नहीं है। समाधि का अर्थ ही है भीतर से परिचित होना, अपने आप से परिचित होना। जब मनुष्य अपने आप से परिचित होना शुरू कर देता है और परिचित हो जाता है तब बाहर में जीना उसके लिए कठिन हो जाता है। बाहर में जीता है तो भी केवल एक साक्षी के रूप में जीता है, तटस्थता के साथ जीता है किन्तु उसमें वह आकर्षण नहीं रहता जो पहले रहता था। आकर्षण की दिशा बदल जाती है। नया आयाम खुल जाता है। जीवन के तीन आयाम
जब तक जीवन में समाधि का अवतरण नहीं होता, तब तक आदमी प्रियता और अप्रियता-इन दो आयामों में जीता है। उसका सारा जीवन राग और द्वेष की परिधि में बीतता है। जब उसे भीतर का परिचय प्राप्त होता है, आन्तरिक जागरण होता है तब तीसरा आयाम उद्घाटित होता है। वह तीसरा आयाम है-वीतरागता, समता या संयम। यह जीवन का तीसरा आयाम है। इस आयाम में जीने वाला समाधि को प्राप्त होता है। सामान्यतः आदमी प्रियता या राग में जीता है अथवा अप्रियता या द्वेष में जीता है। इन दोनों से परे होकर 'समता' में जीना सबके लिए सुलभ नहीं है। सामायिक का उपलब्ध होना सरल नहीं है। जैन लोग परंपरागत रूप में सामायिक का अनुष्ठान करते हैं। मुनि की सामायिक यावज्जीवन की होती है और उपासक की सामायिक अल्पकालिक होती है। सामायिक का अर्थ है-समताभाव में अवस्थिति। सामायिक करने वाला समाधि में रहता है। यह कभी नहीं हो सकता कि कोई व्यक्ति सामायिक करे और असमाधि में रहे, मन की अशान्ति भोगता रहे। जब सामायिक होगी, समता होगी तो समाधि अपने आप होगी। सामायिक, समता, संयम और समाधि-ये एकार्थक हैं। समता का अवतरण तब होता है जब प्रियता और अप्रियता की गांठ खुलती है, राग और द्वेष की ग्रन्थि का विमोचन होता है। इस गांठ के खुले बिना समता का अवतरण नहीं हो सकता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org