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________________ समाधि के मूल सूत्र १०७ कि रंग-रूप को देखा जाए, पर इसलिए की जाती है कि इस मांस और चमड़ी के पुतले के भीतर जो प्राण और चेतना का प्रवाह है, उससे संपर्क स्थापित हो। उसका साक्षात् अनुभव करने का एक उपाय है-शरीर-प्रेक्षा। यह समाधि तक पहुंचने का उपाय है। तनाव आदमी ही नहीं, पशु भी तनाव से भरा रहता है। बड़े तनाव आठ हैं। इनमें चार तनाव व्यापक हैं-आहार का तनाव, भय का तनाव, काम (मैथुन) का तनाव और परिग्रह का तनाव। सैद्धान्तिक भाषा में इन्हें आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा कहा जाता है। ये चार व्यापक तनाव हैं। ये सब प्राणियों में पाए जाते हैं। पशु में भी ये तनाव पाए जाते हैं। उनमें परिग्रह का तनाव सबसे कम होता है। पशु संचय नहीं करता और यदि करता है तो बहुत थोड़ा। सारे पशु संचय नहीं करते, कुछेक ही करते हैं। चींटियां और मधुमक्खियां संचय करती हैं, पर थोड़ा। शेष बहुत सारे पशु-पक्षी असंग्रही होते हैं। गाय-भैंस के सामने चारा डाला। जितना खाना था खा लिया, संचय नहीं। कहीं ग्रामान्तर जाना है तो घास साथ ले जाने की चिन्ता नहीं। यह है-असंग्रह वृत्ति। उससे अधिक तनाव होता है मैथुन का। उससे अधिक तनाव होता है भय का और सबसे अधिक तनाव होता है भोजन का। यह पशु में होने वाले तनावों का तारतम्य मनुष्य में सबसे कम तनाव होता है भय का। उससे अधिक तनाव होता है भोजन का। उससे अधिक तनाव होता है परिग्रह का, संचय का और सबसे ज्यादा तनाव होता है कामवासना का, मैथुन का। पशु में सबसे ज्यादा तनाव होता है-भोजन का और मनुष्य में सबसे ज्याद तनाव होता है-कामवासना का। जब तक मनुष्य में काम का तनाव नहीं मिटता, तब तक समाधि की बात घटित नहीं होती। क्रोध, भय आदि का तनाव होता है और दो-चार-दस घंटों में मिट जाता है, उपशान्त हो जाता है परंतु कामवासना का तनाव, जाने-अनजाने, चौबीस घंटा भी रह जाता है। यह सबसे भयंकर तनाव है। इस एक तनाव के कारण और अनेक तनाव घटित होते हैं। आर्यरक्षित ने प्रज्ञापना सूत्र में इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। समाधि है भीतर समाधि तक पहुंचने के सारे आलम्बन हमारे भीतर हैं। बाहर से कुछ भी नहीं लेना है। मैं जो बाहर से लेने की बात कर रहा हूं, वह सापेक्ष है। हमें सबका रेचन करना है। शरीरशास्त्रियों, आयुर्वेद के आचार्यों और मनोवैज्ञानिकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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