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________________ १०४ अप्पाणं सरणं गच्छामि की शय्या पर तड़पते रहने के लिए नहीं जन्मा हूं।' जो व्यक्ति इन सूत्रों को साक्षात् जीने लगता है वह कभी विषाद से नहीं भरता, वह कभी दुःखी जीवन नहीं जीता। जो विषाद और दुःख के क्षण आते हैं, वे बीत जाते हैं, व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर पाते। वह व्यक्ति जैसे सुख के क्षणों में प्रसन्न और आनन्दित रहता था, वैसे ही भयंकर दुःख के क्षणों में भी प्रसन्न और आनन्दित रह जाता है। वह सभी कठिन समस्याओं, बाधाओं और दुःखों को झेलने में सक्षम हो जाता है। वह दुःखों से तप्त नहीं होता, टूटता नहीं। मृगचर्या जैन मुनियों की एक श्रेणी है-जिनकल्प। जो मुनि जिनकल्प की साधना स्वीकार करते हैं, उन्हें अत्यन्त कठोर आचार का पालन करना पड़ता है। मृगापुत्र राजकुमार था। वह मुनि बनना चाहता था। माता-पिता से आज्ञा मांगी। माता-पिता ने उसे प्रव्रजित होने से रोका। प्रव्रजित होने का अर्थ है-संसार से विमुख हो जाना। माता-पिता ऐसा नहीं चाहते थे। उन्होंने पुत्र से कहा-वत्स! मुनिचर्या बहुत कठोर होती है। मुनि बनने के बाद चिकित्सा नहीं करानी है। तुम्हें जीवन-भर निश्चिकित्स्य रहना होगा। कितना कठोर कर्म है। शरीर रोगों का आलय है। चिकित्सा के अभाव में शरीर का क्या नहीं हो जाएगा? कितने कष्ट सहने होंगे। सोचो! राजकुमार ने कहा-'यह ठीक है। जंगल का एक हिरण बीमार हो जाता है तो उसकी चिकित्सा कौन करता है? कौन उसे दवाई देता है? कौन उसकी परिचर्या करता है? जब वह अस्वस्थ होता है तब छांह में बैठ जाता है और स्वस्थ होते ही खाने-पीने के लिए चल देता है। मैं भी इस मृगचर्या में रहूंगा। मुझे कोई परवाह नहीं है।' दवा लेना विवशता जिस व्यक्ति में इस आस्था का निर्माण हो जाता है, वह रोगों के भयंकर आक्रमणों से बच जाता है। भीतर की शक्तियों के साथ जिसका संपर्क हो जाता है, वह चिकित्सा के लिए इतना व्यग्र नहीं होता। दवा लेना मनुष्य की दुर्बलता है, विवशता है। जिसमें आस्था का पूरा निर्माण नहीं होता वह अधिक दवा लेता है। ऐसे लोग भी हैं जो इतनी दवा लेते हैं कि उनके शरीर का अणु-अणु औषधिमय बन जाता है। पता नहीं वे कैसे जीते हैं? शरीर में कितना विष जमा हो जाता है। विष विष की मांग करता रहता है। आदमी जहर से भरा हुआ जहर पीता चला जाता है। ___ अभी-अभी फूलकुमारी सेठिया अमेरिका की यात्रा कर लौटी हैं। उन्होंने बताया-अमेरिका में 'साइन्स क्रिश्चियन सोसायटी' है। उसके पचासों चर्च हैं और हजारों सदस्य। उस सोसायटी का एक नियम है कि कोई भी सदस्य दवाई नहीं ले सकता। चाहे बुखार हो या जुकाम, चाहे टी.बी. हो या हार्ट ट्रबल, चाहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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