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________________ समाधि के मूल सूत्र १०३ उलझना पड़ेगा और समस्या आती है तो उसे भोगना पड़ेगा। किन्तु जिसे यह पता है कि उसके भीतर अनन्त आनन्द का महासागर हिलोरें ले रहा है, उसमें नयी चेतना जागती है और उसमें इस आस्था का निर्माण होता है कि मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं। जिस अज्ञान के कारण मैं दुःख भोग रहा हूं, उस अज्ञान को मैं मिटा दूंगा और आनन्द के महासागर में गोते लगाऊंगा। वह कभी दुःखी नहीं हो सकता। आशा : निराशा जीवन के दो पक्ष हैं-एक है आशा का पक्ष और दूसरा है निराशा का पक्ष। एक है उल्लास और हर्ष का पक्ष, दूसरा है चिन्ता और विषाद का पक्ष। एक है अभय का पक्ष, दूसरा है भय का पक्ष। मनुष्य का स्वभाव ही है कि वह शुक्लपक्ष की ओर ध्यान कम देता है, सदा कृष्णपक्ष को ही देखता रहता है। मनुष्य की चेतना का निर्माण ही कुछ ऐसा हुआ है, वह सदा कमी की ओर देखता है। वह चिन्ता, निराशा और भय को जल्दी पकड़ता है। आनन्द, आशा और अभय को वह जल्दी पकड़ नहीं पाता। बीमारी सीने तक अमेरिका के भूतपूर्व कृषिमंत्री अन्डरसन ने लिखा है-मैं इक्कीस वर्ष का था। बीमार हो गया। टी.बी. की भयंकर बीमारी। डॉक्टरों ने अचिकित्स्य घोषित कर दिया। अस्पताल में एक बूढ़ा आदमी रहता था। वह मेरे पास आकर बोला-बेटे! अभी तुम्हारी अवस्था बहुत छोटी है। एक महत्त्वपूर्ण बात कहना चाहता हूं। देखो, यदि तुम्हारी बीमारी सीने तक ही सीमित रही तो तुम्हें कोई खतरा नहीं है और यदि यह मस्तिष्क तक पहुंच गई तो फिर जी नहीं सकोगे। ध्यान रखना, सीने की बीमारी मस्तिष्क तक न पहुंच जाए। इस बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया और उसी क्षण से मैं इस प्रयत्न में लग गया कि सीने की बीमारी मस्तिष्क तक न पहुंचे। मैंने चिन्ता छोड़ दी। प्रसन्नता से जीने लगा। कुछ ही दिनों में मैं स्वस्थ हो गया। डॉक्टरों को बहुत विस्मय हुआ। डॉक्टों ने टी.बी. की दिशा में अनेक प्रयोग किए हैं। उन्होंने लिखा है-जो रोगी अपनी टी.बी. की बीमारी को सीने तक ही रखता है, वह खतरनाक स्थिति में जाकर भी जी लेता है। वह मरते-मरते बच जाता है। जो रोगी उस पर नियंत्रण नहीं कर पाते, जिनकी बीमारी मस्तिष्क तक पहुंच जाती है, वे चिन्ताओं से ग्रस्त होकर, बीमारी से नहीं, उसकी चिन्ता से शीघ्र ही मर जाते हैं। बीमारी को मस्तिष्क तक पहुंचाने का अर्थ है-चिन्ताओं से मस्तिष्क को भर देना, निरंतर उसकी चिन्ता से ग्रस्त रहना। व्यक्ति सदा उज्ज्वल पक्ष का चिन्तन करे, प्रकाश का अनुभव करे। वह सदा इन सूत्रों को याद रखे-'मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं। मैं रोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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