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६६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
कभी नहीं चल सकती। लोग कहते हैं-हिंसा बहुत शक्तिशाली है, झूठ बहुत शक्तिशाली है, किन्तु गहरे में उतरकर देखें तो ज्ञात होगा कि यदि अहिंसा न हो तो हिंसा अपनी मौत मर जाए और यदि सत्य न हो तो झूठ का अस्तित्व ही न रहे। झूठ सचाई के सहारे पलता है या सचाई झूठ के सहारे पलती है? हिंसा अहिंसा के सहारे पलती है या अहिंसा हिंसा के सहारे पलती है? आदमी जीवन में हिंसा कम करता है, झूठ कम बोलता है। उसका सारा व्यवहार अहिंसा और सत्य के आधार पर चलता है। सारे आवेग आन्तरिक अच्छाइयों के आधार पर पलते हैं। मूल की खोज
मूल है प्रियता। हम उसका स्पर्श करें। धर्म और अध्यात्म का सारा उपदेश प्रियता की अनुभूति को कम करने की प्रेरणा देता है। क्रोध क्यों आता है? प्रियता है इसीलिए क्रोध आता है। एक रहस्य जान लेना चाहिए। अपनी पत्नी या पुत्र पर जितना क्रोध आएगा, पड़ोसी पर नहीं आएगा। क्योंकि पड़ोसी की अपेक्षा पत्नी और पुत्र पर प्रियता का भाव अधिक है। भय का आवेग क्यों जागता है? प्रियता है इसीलिए भय होता है। प्रिय वस्तु, जो प्राप्त है, वह चली न जाए, इस भय से व्यक्ति भयभीत रहता है। यदि किसी चेतन-अचेतन के प्रति प्रियता न हो तो न क्रोध जागेगा और न भय सताएगा। जिनके पास धन है उन्हें बहुत भय रहता है क्योंकि धन के साथ उनकी प्रियता जुड़ी हुई है। शरीर चला न जाए, यह भय होता है क्योंकि शरीर के प्रति हमारी प्रियता है। आदमी सोता है। सोचता है-आंगन जमीन के बराबर है। रात को सांप न काट जाए। भय क्यों हुआ? न वहां सांप है और न कुछ और। भय इसलिए आया कि शरीर बहुत प्रिय है। प्रियता ही सारे आवेगों की जननी है। शोक और हर्ष प्रियता के कारण होता है। प्रियता है बीज। जब वह बीज फलता है तब संवेग का पूरा वृक्ष लहलहा उठता है। फूल, पत्ते और फल आते हैं। सब कुछ होता है।
प्रियता के कारण अप्रियता बनती है। अप्रियता के कारण भी क्रोध जागता है। अप्रियता भय का हेतु भी बनता है। आदमी संत्रस्त रहता है कि अप्रिय का संयोग न हो जाए, अप्रिय घटना घटित न हो जाए। वायुयान की दुर्घटना कहीं होती है और भय कहीं व्याप्त हो जाता है।
एक चोर आया। संन्यासी का कंबल चुराकर भाग गया। वह पकड़ा गया। जज ने पूछा-तुमने संन्यासी का क्या चुराया था? चोर ने कहा-केवल एक कंबल ही मिला। संन्यासी ने कहा-यह झूठा है। इसने मेरा सब कुछ चुरा लिया है। इसने मेरा बिछौना, मेरा सिरहाना, मेरा ओढ़ने का वस्त्र सब कुछ चुरा लिया है। जज ने फिर चोर से पूछा-सच-सच बताओ। झूठ मत बोलो। चोर ने
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