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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
विस्तार से आकाश का, समाधि से योगी का, त्याग से तपस्वी का, ज्ञान से ज्ञानी का और रूप से रूपवती भार्या का महत्त्व होता है उसी प्रकार स्तुति से भागवतमहापुराण संसार में प्रसिद्ध है । कर्मकालिन्दी, ज्ञानसरस्वती और भक्ति की गंगा, भागवत के पावन सगम पर आकर एकाकार हो जाती हैं।
श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों का द्विविधा विभाजन किया है-सकाम और निष्काम । सकाम स्तुतियां लौकिक अभ्युदय, रोग से मुक्ति, कष्ट से त्राण, विपत्ति से रक्षा, मान, यश, धन-सम्पत्ति, पुत्र-पौत्र इत्यादि की अवाप्ति के लिए की गई है । अर्जुन, उत्तरा, दक्ष प्रजापति, ब्रह्मा, देवगण, गजेन्द्र आदि की स्तुतियां इसी कोटी की हैं। निष्काम स्तुतियों में कोई लौकिक कामना नहीं होती, केवल प्रभु प्रेम या प्रभु चरणरति या प्रभुनिकेतन की प्राप्ति की कामना रहती है। इनकी भी दो कोटियां हैंसाधनाप्रधान और तत्त्वज्ञान प्रधान । साधन प्रधान स्तुतियों में भक्त दास्य, सख्य, वात्सल्य प्रेम या प्रपत्ति भाव से प्रभु की स्तुति करता है। प्रभु प्रेम की प्राप्ति एवं उनके सातिशय गुणों का गायन ही उसका लक्ष्य होता है । भक्त अम्बरीष, पृथु, प्रह्लाद आदि की स्तुतियां साधना प्रधान हैं । तत्त्वज्ञान प्रधान स्तुतियां जगत् के एक-एक पदार्थ का निषेध करते-करते अन्त में अपना भी निषेध कर प्रभु में एकाकार हो जाती है । वेदस्तुति और पितामह भीष्म की स्तुतियां इसी विधा के अन्तर्गत हैं। इसके अतिरिक्त उपास्य के आधार पर स्तुतियों के तीन भेद किए गए हैं-ब्रह्मविषयक, विष्ण के अवतार विषयक एवं अन्य देवों से संबद्ध स्तुतियां आदि । भावना के आधार पर स्तुतियों के सात प्रकार हैं-ज्ञानी भक्तों की स्तुतियां, दास्यभाव, सख्य भाव प्रधान, प्रेमभावप्रधान, उपकारभाव प्रधान, आर्तभाव प्रधान एवं कामादि भावों से युक्त स्तुतियां आदि । अवसर के आधार पर तीन भेद हैंसुखावसान होने पर दुःखावसान होने पर एवं प्राण प्रयाणावसर पर की गई स्तुतियां । भक्तों की सामाजिक स्थिति के आधार पर दो भेद-सर्वस्व त्यागी भक्तों की स्तुतियां एवं गार्हस्थ्य भक्तों की स्तुतियां हैं। इसके अतिरिक्त श्लोकों के आधार पर भी स्तुतियों का विभाजन किया गया है।
श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों पर प्राचीन वाङमयों में उपन्यस्त स्तुतियों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है । सारे सकाम स्तुतियों का मूल उत्स वे वैदिक मन्त्र हैं जिनका प्रत्यक्षधर्मा ऋषि लौकिक अभ्युदय एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए विभिन्न अवसरों पर प्रयोग करता है । निष्काम स्तुतियों का मूल रूप पुरुषसूक्त, नासदीय सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त, वाकसूक्त आदि हैं। रामायण की स्तुतियां भी भागवतीयों स्तुतियों को अत्यधिक प्रभावित करती है। याज्ञवल्क्योपदिष्ट आदित्यहृदयस्तोत्र परवर्ती संपूर्ण नामरूपात्मक कवच स्तोत्रों का आद्य स्थल है। भागवत का "नारायणकवच' स्पष्टरूपेण इस
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