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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतितत्त्व, छन्द और भाषा
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इसके प्रत्येक चरण में त, त, ज और रगण के क्रम से १२ अक्षर हैं । अन्य उदाहरण के लिए इसी स्तुति का २३ वां श्लोक द्रष्टव्य है । (८) वसन्ततिलक
वसन्ततिलक छन्द में चारों चरण समान होते हैं । प्रत्येक तगण, भगण दो जगण एवं दो गुरु वर्ण होते हैं । यह चतुर्दश वृत्त है |
ज्ञयं वसन्ततिलकं तभजाजगौ गः '
भागवतकार का यह अत्यन्त प्रिय छन्द है । भक्ति की महनीयता का प्रतिपादन इस छन्द के माध्यम से किया गया है । सम्पूर्ण ध्रुवस्तुति एवं प्रह्लाद स्तुति इसी छन्द में उपन्यस्त है । एक भक्ति परक श्लोक जिसमें ध्रुव भक्ति की ही याचना करता है
भक्ति मुहुः प्रवहतां त्वयि मे प्रसङ्गो भूयादनन्त महताममलाशयानाम् । येनाजसोल्बण मुरुव्यसनं भवाब्धिं नेष्ये भवद्गुणकथामृतपानमत्तः ॥ ` अनेक स्तुतियों में इस छंद का उपयोग हुआ है ।
६. शार्दूलविक्रीडित
चरण में अक्षरों वाला
जिसके चारों चरणों में क्रमशः मगण, सगण, जगण, तगण, तगण और गुरु वर्ण हों उसे शार्दूलविक्रीडित छन्द कहते हैं- "सूर्याश्वैर्यदिमः सजी सततगाः शार्दूलक्रीडितम्” । इसमें १२ और सात वर्णो पर यति होती है । श्रीमद्भागवत के अनेक स्तुतियों में यह छन्द मिलता है । ब्रह्माकृत भगवत्स्तुति में दो श्लोक इस छन्द में निबद्ध है । अन्यत्र भी यत्र-तत्र इसका अत्यल्प उपयोग हुआ है
अद्यैव त्वदृतेऽस्य किं मम न ते मायात्वमादर्शित
मेकोsसि प्रथमं ततो व्रजसुहृद् वत्साः समस्ता अपि । तावन्तोऽसि चतुर्भुजास्तदखिलैः साकं मयोपासिताः
तावन्त्येव जगन्त्यभूस्तदमितं ब्रह्माद्वयं शिष्यते ॥
१०. उपजाति
भागवतीय स्तोताओं का यह प्रिय छन्द है । इसका स्वतंत्र रूप नहीं होता है । दो छन्दों के सम्मिलन से इसका रूप निर्धारण होता है । इसके अनेक रूप पाये जाते हैं । श्रीमद्भागवत में निम्नलिखित रूप मिलते हैं
१. छन्दोमंजरी, पृ० ६५, २।१५
२. श्रीमद्भागवत ४.९.११
३. छन्दोमंजरी, पृ० १००
४. श्रीमद्भागवत १०.१४.१८
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