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उपेन्द्र वज्रा
यह चार चरणों से युक्त समवृत्त छन्द है । प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण एवं दो गुरु के क्रम से ग्यारह अक्षर होते हैं ।" श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अनेक स्थलों पर इस छंद का प्रयोग प्राप्त होता है । स्वयं समुत्तीर्य सुदुस्तरं द्युमन्भवार्णवं भीममदासौहृदाः । भवत्पदाम्भोरुहनावमत्र ते निधाय याताः सदनुग्रहो भवान् ॥
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इस उपेन्द्रवज्रा छन्द के द्वारा भक्त की महिमा का प्रतिपादन किया
श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
गया है । (६) मालिनी
"न नमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः " अर्थात् मालिनी समवृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण से नगण, नगण, मगण, यगण तथा यगण क्रम से पन्द्रह अक्षर होते हैं । आठवें एवं सातवें अक्षर के बाद यति होती है । श्रीमद्भागवत के अंत में सूत जी द्वारा शौनकादि ऋषियों के लिए संक्षिप्त भागवत की विषय सूची के वर्णन के बाद मालिनी छन्द में भगवान् श्रीकृष्ण के अनन्योपासक श्रीशुकदेव गोस्वामी को नमस्कार किया गया हैस्वसुखनिभृतचेतास्तद्व्युदस्तान्यभावोऽप्यजितरुचिरलीलाकृष्टसारस्तदीयम् । व्यतत कृपया यस्तत्त्वदीपं पुराणं तमखिलवृजिनघ्नं व्याससूनुं नतोऽस्मि ॥ (७) इन्द्रवंश
यह समवृत्त छन्द है । इसके चारों चरण समान होते हैं । प्रत्येक चरण में दो तगण, जगण और रगण के क्रम से १२ अक्षर होते हैं । यह वंशस्थ के समान ही है, केवल इसमें आदि अक्षर गुरु हो जाता है । "तच्चेन्द्रवंशा प्रथमेऽक्षरे गुरौ ।""
स्तुतियों के अनेक स्थलों पर इस छन्द का विनियोग मिलता है । विशेषकर भक्ति की महत्ता एवं दर्शन के तत्त्वों को उद्घाटित करने के लिए भागवतकार ने इस द्वादशाक्षर वृत्त का प्रयोग किया है। कुछ स्थल द्रष्टव्य हैं
यत्कीर्तनं यत्समरणं यदीक्षणं यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्हणम् । लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ॥
१. उपेन्द्र वज्राप्रथमे लघौ सा । छन्दोमञ्जरी, चौखम्बा सुरभारती
१९८३, पृ० ३४
२. श्रीमद्भागवत १०।२।३१
३. तत्रैव १२. १२.६८
४. छन्दोमंजरी, द्वितीय स्तवक, पृ० ४६, २।१३
५. श्रीमद्भागवत २.४.१५
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