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१. स्तुति : अर्थ एवं स्वरूप
भारतीय वाङमय में स्तुति शब्द के प्रयोग की सुदीर्घ परम्परा है। ऋग्वेद में इसका आद्य प्रयोग उपलब्ध होता है। अन्य संहिताओं, ब्राह्मणों तथा उपनिषदों में भी इसके प्रयोग मिलते हैं। निरूक्त में बहुशः स्थलों पर स्तुति शब्द का विनियोग हुआ है। वहीं पर स्तुति अर्थ में "संस्तव' शब्द का भी प्रयोग किया गया है। आर्ष महाकाव्य रामायण एवं महाभारत में अनेक स्थलों पर स्तुति शब्द विनियुक्त मिलता है।' महाभारत में स्तोत्र, स्तव आदि शब्द भी अनेक बार आये हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में स्तुति का प्रयोग मिलता है तथा पुराणों में अनेक स्थलों पर यह शब्द उपलब्ध होता है।" संस्कृत महाकाव्यों में भी स्तुति शब्द अनेक बार आया है । इस प्रकार स्तुति शब्द की प्रयोग परम्परा वैदिक काल से ही अविच्छिन्न रूप में प्रवाहित होती रही है। स्तुति : व्युत्पत्ति एवं अर्थ
अदादिगणीय "ष्टुन स्तुतौ' धातु से “स्त्रियां क्तिन्"१ से भाव में क्तिन् प्रत्यय करने पर स्तुति शब्द निष्पन्न होता है । "स्तवनं स्तुति:" अर्थात् इसका अर्थ स्तवन किंवा प्रशंसा, स्तोत्र, ईडा नुति, आदि है । विभिन्न कोश ग्रन्थों में स्तुति शब्द के अर्थ पर प्रकाश डाला गया है। अमरकोश के अनुसार
१. ऋग्वेद १.८४.२, ६.३४.१, १०.३१.५१, ८.२७.२१ २. शतपथ ब्राह्मण ७.५.२.३९ ३. रामतापनीयोपनिषद्-३० ४. निरूक्त ७.१,३.७ ५. तत्रैव ७.११ ६. बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड १५३२, अयोध्याकाण्ड ६५१३ ७. महाभारत शांतिपर्व २८४।५६,३३७।३, भीष्मपर्व २३.२,३ ८. तत्रैव शांतिपर्व ४७।११०, २८११२६ ९. श्रीमद्भगवद्गीता १११२१ १०. विष्णु पुराण २०।१४, देवीभागवतपुराण ४५।१४५, श्रीमद्भागवतपुराण
३.१२.३७, ३.२९.१६, ४.९.१५ ११. पाणिनि अष्टाध्यायी ३.३.९४
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