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का समावेश गीतिकाव्य में आवश्यक है ।
पाश्चात्य विद्वान् "अर्नेष्ट राइस" महोदय के अनुसार " गीत वह तत्त्व है जिसमें भाव का, भावात्मक विचार का अथवा भाषा का स्वाभाविक विस्फोट होता है । जो शब्द और लय के द्वारा सूक्ष्माभिव्यक्ति को प्राप्त होता है तथा जिससे पदलालित्य और शब्दमाधुर्य से ऐसी संगीतमय ध्वनि निकलती है, जो स्वाभाविक भावात्मक अभिव्यक्ति का रूप धारण करती है । गीतिकाव्य के शब्द सरल, कोमल ओर नादपूर्ण होते हैं । गीत का उनमें प्रवाह होता है, अनुभूति का सुन्दर आरोह और अवरोह होते हैं, माधुर्य एवं प्रसाद का चारू विन्यास होता है ।' राइस महोदय के परिभाषा विश्लेषण से गीतिकाव्य के निम्नलिखित तत्त्व परिलक्षित होते हैं
श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
भावात्मकता
२. शब्द और लय का सामंजस्य
३. संगीतात्मकता
४. माधुर्य
५. प्रवाह
६. स्पष्टता
७. आत्मनिष्ठता
८. माधुर्य एवं प्रसाद गुण की अधिकता
"हडसन महोदय" के अनुसार गीतिकाव्य में अनुभूति की सफलता प्रधान होती है । भाषा और भाव का सामंजस्य उसकी विशिष्टता है । किसी भी एक ही चित्तवृत्ति की अभिव्यक्ति के कारण संक्षिप्तता उसका स्वभाव है । उसका लघु कलेवर घनीभूत-भाव- सांद्रता को अभिव्यंजित करता है । कलाचमत्कार उसकी अधीनता का द्योतक होता है । कवि स्वांत: प्रदेश में प्रविष्ट होकर बाह्यजगत् के पदार्थों को अपने अन्दर लाकर उन्हें भावों से रंजित करता है । गीतिकाव्य में आत्माभिव्यंजक गेय एवं मधुर पदों का सन्निवेश होता है । सुकोमल भावना एक-एक पदों में पूर्ण होकर विरमित हो जाती है ।" हडसन महोदय के विचार विश्लेषण से गीतिकाव्य में निम्नलिखित तत्त्वों का सद्भाव आवश्यक है।
१. आत्माभिव्यंजन
२. भावमयता
३. गेयता
४. माधुर्य
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५. शब्दसाधना
६. संगीतात्मकता
७. सुकोमल भावना
१. इन साइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका, भाग १४, लीरिक पृ० १७४६ २. इन्ट्रोडक्शन टू दी स्टडी ऑव लिटरेचर, पृ० १२५ - १२७
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