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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का काव्यमूल्य एवं रसभाव योजना
आचार्य विश्वनाथ ने मम्मट की मान्यता का समर्थन करते हुए रस को काव्य पुरुष की आत्मा, माधुर्य, प्रसाद और ओज को उसकी शूरवीरता, दया एवं दाक्षिण्यादि को गुण, श्रुतिकटुत्वादि को दोष उपमादि को उसके विभिन्न अलंकार बताया है ।" इनके मत में रस, भाव, गुण, अलंकार एवं औचित्य काव्य के प्रतिमान हैं। पंडित राज जगन्नाथ ने रमणीय अर्थ के प्रतिपादक शब्द को काव्य कहा है । रमणीयता अलौकिक चमत्कार का पर्याय है और विशिष्ट प्रकार की आनन्ददायिनी अनुभूति है । इनकी दृष्टि में विशिष्ट चमत्कार ही काव्य का सबसे बड़ा प्रतिमान है ।
भक्त कवि जगद्धरभट्ट ने शिव की स्तुति करते समय उत्तम काव्य के प्रतिमानों का निर्देश किया है
ओजस्वी मधुरः प्रसादविशदः संस्कारशुद्धोभिधाभक्तिव्यक्तिविशिष्टरीतिरचितैरधृतालंकृतिः । वृत्तस्थः परिपाकवानविरसः सद्वृत्तिरप्राकृतः तस्य कस्य न सत्कविर्भुवि यथा तस्यैव सूक्ति क्रमः ॥
अर्थात् ओज, प्रसाद एवं माधुर्य गुणों का सद्भाव, विशुद्धसंस्कार
युक्त भाषा, विशिष्ट रीति-सम्पन्नता, सरसता, अलंकार युक्तता, अभिधाशक्ति के साथ लक्षणा और व्यंजना का सद्भाव, सुन्दर छन्दों का समावेश, शिक आदि वृत्तियों का निवेश एवं उक्ति चमत्कार उत्कृष्ट काव्य के लिए आवश्यक प्रतिमान हैं ।
उपर्युक्त मतों के समालोचना से उत्तम काव्य के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं
(१) माधुर्यादि गुणों का सन्निवेश
(२) शुद्ध संस्कार युक्तभाषा
(३) अलंकारों का प्रयोग (४) चमत्कारजन्यता
(५) आह्लादकता
(६) सुकुमारता (७) भावों की अभिव्यंजना (८) वैदर्भादि रीतियों का प्रयोग ( ९ ) समरस छन्दों का समावेश (१०) उक्ति वैचित्य
१. साहित्य दर्पण, पृ० १२ २. रसगंगाधर १.१ ३. स्तुतिकुसुमांजलि ५.३
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