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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
अनिवार्य एवं व्यापक गुण बतलाया है ।' आचार्य भामह के मत में गुण, अलंकार, अदोषता, एवं वक्रोक्ति आदि उत्तम काव्य के लिए आवश्यक तत्त्व हैं । आचार्य दण्डी के अनुसार उत्तम काव्य में श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कान्ति और समाधि ये दश गुण वैदर्भी मार्ग के प्राण हैं। रीति और गुण का सम्बन्ध स्थापित होने पर ही वैदर्भ काव्य को सत्काव्य कहा जाता है। आचार्य रूद्रट का मत है कि काव्य में चारुत्व लाने के लिए अलंकारों का सन्निवेश आवश्यक है । टीकाकार नमिसाधु ने लिखा है कि दोषों का त्याग, सारग्रहण, अलंकारप्रयोग आदि प्रमुख तत्त्व हैं । निर्दुष्ट तथा अलंकारयुक्त रचनाशक्ति अथवा कवि-प्रतिभा, व्युत्पत्ति, निपुणता एवं प्रभूत अभ्यास के कारण ही महनीय कृति का प्रणयन होता है। छन्दकोशादि विविध शास्त्रों के अध्ययन एवं मनन (अनुशीलन) से काव्य प्रणयन में गंभीरता एवं रमणीयता का आधान होता है। अतएव ये दोनों तत्त्व अध्ययन और मनन, काव्य मूल्य के निर्मापक आधारों में से
___ वामन के अनुसार काव्य का सौन्दर्य शब्द और अर्थ में निहित है । माधुर्यादि गुण काव्य सौन्दर्य के मूल कारण होने के कारण काव्य के नित्य धर्म हैं । उपमादि अलंकार उत्कर्षाधायक होने के कारण अनित्य धर्म हैं। अतएव काव्य में माधुर्यादि गुणों एवं उपमादि अलंकारों का सन्निवेश आवश्यक है।
आचार्य कुन्तक के अनुसार किसी भी काव्य के लिए षड्विध वक्रता का समावेश आवश्यक है । वर्ण चमत्कार, शब्द सौन्दर्य, विषय वस्तु की रमणीयता, अप्रस्तुतविधान एवं प्रबन्ध कल्पना ये षड्विध वक्रोक्ति के अन्तर्गत आते हैं। रस, अलंकार, उक्ति वैचित्र्य, औचित्य एवं मार्गत्रयसुकुमार, विचित्र और मध्यम भी काव्य चमत्कार के सृजन के लिए आवश्यक है। मम्मट ने वाच्यार्थ के अपेक्षा व्यंग्यार्थ को उत्तमकाव्य के लिए अत्यधिक उपयुक्त माना है। १. काव्यालंकार ५.६६ २. तत्रव ३.५४ ३. काव्यादर्श १.४१-४४ ४. काव्यालंकार १.४ की टीका ५. तत्रैव १.१८ ६. काव्यालंकार सूत्र ३.१.१ एवं ३.१.३ ७. वक्रोक्तिजीवितम् १.९.२१ ८. तत्रैव १.६,२३,२४,५३ ९. काव्य प्रकाश १.२.४
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