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________________ दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां १५३ लहरा रहे हैं। तलवार के समान लपलपाती एवं छूरे की धार के समान तीखी जिह्वा एवं टेढ़ी भौहों से युक्त उनका मुख अत्यन्त भयंकर है। बृहद् - नासिका, विशालशरीर, चौड़ी छाती, सैकड़ों आयुद्धों से युक्त भुजायें, सुदर्शनचक्र आदि से युक्त भगवान् अत्यन्त भयंकर हैं । __ लोक मंगल के लिए, भक्तों के कल्याणार्थ ही आप नसिंह रूप में अवतरित होते हैं । शरण में आये भक्तों की रक्षा करते हैं।' आपके भक्त मुक्ति का भी अनादर करके आपके शरणागत होते हैं और आप उसके बाल भी बांका नहीं होने देते हैं। __ इस प्रकार श्रीमद्भागवत में भगवान् नृसिंह का चरित अति संक्षिप्त रूप में आया है । भक्त भयनिवृत्यथं ये अवतार ग्रहण करते हैं। देव नामों का विवेचन विविध प्रपंचात्मिका सृष्टि में स्वभाव, गुण क्रिया आदि का वैलक्षण्य होने से नाम, अभिधान, संज्ञा आदि भी भिन्न-भिन्न तरह के होते हैं। अपनी हृदयस्थ भावनाओं के आधार पर या अभिधेय के गुणादि को सामने रखकर विविध नाम संज्ञादि से उसे अभिहित करते हैं। वार्तालाप, व्यवहार कार्य में प्रत्येक वस्तु को किसी न किसी रूप में अभिहित किया जाता है। स्तुतियों में देवों के लिए विभिन्न नामों का प्रयोग किया गया है। उनमें अर्थ की दृष्टि में कोई भेद नहीं है बल्कि केवल प्रवृत्ति निमित्त का भेद रहता है। भक्त अपने उपास्य को उनके अपने ही गुणों के अनुसार विविध नाम संज्ञा अभिधानों से विभूषित करता है। जब आर्त, दैन्य, प्रपत्ति, सख्य, उपकृत भाव, प्रेमभाव आदि से भक्तपूर्ण हो जाता है तब उनका चित्त विगलित होने लगता है, मनोवृत्तियां एकत्रावस्थित हो जाती हैं। तभी वह अपने प्रभु के प्रति विविधात्मक अतिसुन्दर नामांजलि प्रस्तुत करता है, वह नामांजलि अपने पारिवारिक सम्बन्धों पर या प्रभु के नाम गणों के आधार पर भी हो सकती हैपारिवारिक संबंध के आधार पर कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च । नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमोनमः ॥' १. श्रीमद्भागवत ७.८.४१ २. तत्रैव ७.८.४२ ३. तत्रैव १.८.२१ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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