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पन्द्रह है वहीं विशुद्धि है और विशुद्धि ही मोक्ष अर्थात् समस्त ग्रन्थियों का उच्छेदक
इस प्रकार विविध गुणों के कारण इस शोध प्रबन्ध में मेरी प्रवृत्ति हुई है । यह शोध प्रबन्ध आठ अध्यायों में विभक्त है।
प्रथम अध्याय में स्तुति शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, पर्याय शब्द, स्तुत्यर्थक धातुएं, श्रीमद्भागवत में स्तुति एवं स्तुत्यर्थक शब्द, स्तुति प्रार्थना और उपासना, स्तुति और भक्ति, स्तुति का आलम्बन, स्तुति के प्रमुख तत्त्व, स्तुति का मनोवैज्ञानिक आधार, स्तुति का महत्त्व आदि विषयों पर विचार प्रस्तुत किया गया है।
"संस्कृत में स्तुति काव्य की परम्परा" नामक द्वितीय अध्याय में स्तुत्योद्भव के अवसर, वैदिक साहित्य में स्तुतियां, ऋग्वेद की स्तुति सम्पदा अन्य वेदों में निबद्ध स्तुतियां, महाकाव्यों एवं पुराणों की स्तुति सम्पत्ति, रामायण की स्तुतियां, महाभारत की स्तुतियां, विष्णुपुराण की स्तुतियां, महाकाव्यों की स्तुति सम्पदा और अन्य स्तुति साहित्य आदि विषयों का विवेचन किया गया है।
तृतीय अध्याय "भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तुविश्लेषण" में भागवतीय स्तुतियों एवं वैदिक स्तुतियों में अन्तर, श्रीमद्भागवत महापुराण की स्तुति सम्पदा, श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का स्रोत, उनका वर्गीकरण एवं प्रमुख स्तुतियों का वस्तुविश्लेषण प्रस्तुत किया गया
"दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां" नामक चतुर्थ अध्याय में श्रीमद्भागवतमहापुराण की स्तुतियों के परिप्रेक्ष्य में ब्रह्म, माया, जीव, जगत, संसार, स्तुतियों में भक्ति का स्वरूप, भक्ति का वैशिष्ट्य, स्तुतियों के आधार पर देवों का स्वरूप, श्रीकृष्ण, विष्णु, शिव, राम, संकर्षण, नसिंह एवं देव नामों का विवेचन आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
श्रीमद्भागवत महापुराण की स्तुतियों का काव्य मूल्य एवं रसभावयोजना नामक पंचम अध्याय में भागवतीय स्तुतियों का काव्य मूल्य, स्तुतियों की भावसम्पत्ति एवं रसविश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
श्रीमद्भागवत महापुराण की स्तुतियों में अलंकार नामक षष्ठ अध्याय में काव्य सौन्दर्य एवं अलंकार योजना, स्तुतियों में अलकार विनियोग, स्तुतियों में बिम्बयोजना एवं प्रतीक विधान आदि का विवेचन किया गया
___ सप्तम अध्याय में श्रीमद्भागवत महापुराण की स्तुतियों में गीतिकाव्य के तत्त्व, स्तुतियों में छन्द योजना एवं स्तुतियों की भाषा पर प्रकाश डाला गया है। आठवें अध्याय में उपसंहार अनुस्यूत है।
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