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दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां
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उनके हाथों में सुशोभित हो रहे हैं । वक्षस्थल श्रीवत्स के चिह्न से तथा गला कौस्तुभमणि से सुशोभित हो रहा है । वर्षाकालीन मेघ के समान परम सुन्दर श्यामल शरीर पर पीतांबर फहरा रहा है। कङ्गणादि आभूषणों से सुशोभित बालक के अंग-अंग से अनोखी छटा छिटक रही है।
.श्रीकृष्ण की बाललीला अत्यन्त आनन्ददायक है। कभी घुटुरनी चलते हैं तो कभी यशोदा मैया की मटकी फोड़ देते हैं। जब मैया बांधने आती है तो आप रोने लगते हैं । बाह जिससे भय भी भय मानता है उसकी यह दशा---
सा मां विमोहयति भीरपि यद्विभेति । (श्रीमद्भागवत १.८.३१) शारीरिक सौंदर्य
श्रीकृष्ण का अतिशय कमनीय कांति सर्वजनहृदयाह्लादक है। चाहे योगी हो या रोगी, भक्त हो या कामी सभी भगवान् के त्रिभुवनकमनीय सौन्दर्य पर मोहित हो जाते हैं। पितामह भीष्म के शब्दों में श्रीकृष्ण का सौन्दर्य अवलोकनीय है
त्रिभुवनकमनं तमालवर्ण रविकरगौरवाम्बरं दधाने ।
बपुरलक कुलावृतननाब्जं विजय सखे रतिरस्तु मेऽनवद्या॥'
उनका मुख कमल के समान सुन्दर है, जिस पर धुंघराली अलके लटक रही हैं। कमनीय कपोलों पर सुन्दर-सुन्दर कुण्डल अनन्त सौन्दर्य विखेर रहे हैं । मधुर-अधर जिनकी सुधा (स्वाद्यता) सुधा को भी लजाने वाली है, उनकी मनोहारी चितवन मन्द-मन्द मुसकान से उल्लसित होरही है, दोनों भुजाएं शरणागतों को अभयदान देने में समर्थ हैं । वक्षस्थल सौन्दर्य की देवी लक्ष्मी का नित्य क्रीड़ास्थल है। उनके नेत्र शरद्कालीन सरसिज के समान अत्यन्त मनोहर हैं। ३. असुरों के हंता
भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार ही खलनिग्रहार्थ हुआ है। खेल-खेल में आपने हयासुर, वकासुर, शंख, कालयवन, मुर, नरकासुर आदि राक्षसों एवं शिशुपाल, दन्तवक्त्र आदि दुष्ट राजाओं का बध किया।' पृथ्वी के भार
१. श्रीमद्भागवत १.९.३३ २. तत्रैव १०.२९.३९ ३. तत्रैव १०.३१.२ ४. तत्र व १०।२७।५ ५. तत्र व १०॥३७।१६,१७ ६. तत्र व १०।२७।२०
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