SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरह है । श्रीमान् और भागवत मिलकर श्रीमद्भागवत बना है । भावार्थदीपिका प्रकाश में वंशीधर कहते हैं श्रीमद्भागवते ऋऋचः सामानि यजूंषि सा हि श्रीरमृता सताम्" इति श्रुतेर्वेदाभ्यास एव श्रीः सा विद्यतेऽस्यास्मिन्वेति श्रीमान् "ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः । ज्ञान वंराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीयंते ॥ इति स्मृतेर्भगः षडविधमैश्वर्य सोऽस्यास्तीति भगवान् कृष्णस्तं भगवंतमुपास्त इति भागवतः । अत्र कारणादण्, श्रीमांश्चासौ भागवतश्चेति श्रीमद्भागवत स्तस्मिंस्तथा ।' अर्थात् " ऋचः सामानि यजूंषि सा हि श्रीरमृता सताम् " इस श्रुतिवाक्य के द्वारा यह प्रतिपादित होता है कि श्रुति का अभ्यास ही श्रीशब्द वाच्य है, जिसमें यह श्री विद्यमान हो वह श्रीमान् है । समस्त ऐश्वर्य, धर्म, यश श्री ज्ञान और वैराग्य इत्यादि छः भग अथवा षड्विध ऐश्वर्य जिसमें विद्यमान हो वही भगवान श्रीकृष्ण हैं और जिसमें श्रीकृष्ण की उपासना की गई हो वह भागवत है । भगवत् शब्द से ' कारणादण्' प्रत्यय होकर भागवत बना है । श्रीमान् और भागवत मिलकर श्रीमद्भागवत हुआ । श्रीराधा रमण गोस्वामी विरचित दीपिनी व्याख्या में कहा गया है साक्षात्भगवताप्रोक्तम् भागवतम् इति निरुक्त्या योगरूढोऽयं भागवत शब्दः न तु यौगिकः । व्याख्याकार श्री शुकदेव के अनुसार भगवतस्वरूप गुणादिवर्णनरूपा श्री विद्यते यस्मिंस्तद् श्रीमत् । भगवत इदं भागवतम् तच्च तच्च तत् । ' अर्थात् भगवान् द्वारा कथित या प्रवाचित ग्रन्थ श्रीमद्भागवत है | श्रीमद्भागवत, श्रीभागवत, भागवती संहिता, नारायणी संहिता, पारमहंसी संहिता, सात्वती संहिता, वैयासिकी संहिता, सात्वतीश्रुति, भागवती श्रुति, ज्ञानप्रदीप, पुराणार्क आदि विभिन्न अभिधान इस महापुराण के प्राप्त होते हैं । सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति और आश्रय आदि दस लक्षणों से युक्त होने के कारण यह महापुराण है ।" द्वादशस्कन्धात्मक इस महापुराण में पूर्ण श्लोक संख्या १६१९५ " उवाच मंत्रों की संख्या १२७०, अर्द्धश्लोक २०० एवं "अमुक स्कधे प्रथमादिरध्यायः " आदि ३३५ वाक्य मिलकर १८००० श्लोकों की संख्या हो जाती है । १. विविध टीकापेत श्रीमद्भागवत महापुराण, पृ० सं० ७४ २. श्रीमद्भागवतमहापुराण पर दीपिनी व्याख्या ३. श्रीमद्भागवत महापुराण, सिद्धांत प्रदीप - पृ० ७४ ४. श्रीमद्भागवतमहापुराण २.१०.१-७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy