SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीककण एवं वस्तु विश्लेषण प्रथम स्कन्ध प्रथम स्कन्ध में पांच स्तुतियां ग्रथित हैं। पांचों स्तुति के स्तुतिकर्ता अलग-अलग तथा अवस्थाएं भी अलग-अलग हैं लेकिन सबका स्तव्य एक मात्र भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं । द्रौण्यास्त्र से भीत अर्जुन (१७) और उत्तरा (१८) अपनी रक्षा के लिए परमप्रभु श्रीकृष्ण की शरणागति को प्राप्त करते हैं । बुद्धिमती कुन्ती भगवान् श्रीकृष्ण के उपकारों से उपकृत होकर उनकी आराधना करती है । (१८) प्राण-प्रयाणावसर में पितामह भीष्म मन इन्द्रिय और सारे कर्मों को भगवान् श्रीकृष्ण में स्थापित कर देते हैं। (१९) कृष्णागमन की बात सुनकर हस्तिनापुर की स्त्रियां अपने वार्तालाप क्रम में प्रभु के दिव्य चरित का गायन करती हैं। कुन्तीकृत भगवत्स्तुति . आज पांडवों के परम हितैषी गोकुलनाथ भगवान् श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से प्रस्थान कर रहे, ऐसी बात सुनकर एवं पूर्वकृत बहुविध उपकारों से उपकृत कुन्ती हाथ जाड़े हुए उस मार्ग पर आती है जिस मार्ग से उसके जन्मजन्मान्तर के उपास्य भगवान् श्रीकृष्ण जा रहे हैं। महारानी कुन्ती को देखकर भगवान् श्रीकृष्ण रथ रोक देते हैं। तब कुन्ती के हृदय की संचित भावनाएं श्रीकृष्ण को पाकर शब्द के रूप में प्रस्फुटित हो जाती नमस्ये पुरुषं त्वमाद्यमीश्वरं प्रकृतेः परम् । अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवस्थितम् ॥ कुन्ती की भक्ति मर्यादा भक्ति है । मर्यादा भक्ति साधन भक्ति होती है और पुष्टि भक्ति साध्य । पहले मर्यादा भक्ति आती है तब प्रेमलक्षणा पुष्टि भक्ति । कुन्ती दास्यमिश्रित वात्सल्य भाव से प्रभु की स्तुति करती है । कुन्ती श्रीकृष्ण का मुख निहारती है- मेरे भाई के पुत्र हैं, तथा मेरे भगवान् हैं--- यह दास्यभाव है । चरण दर्शन से तृप्ति नहीं हुई तो अब मुख देख रही है नमः पङकजनाभाय नमः पङकलमालिन । नमः पङकजनेत्राय नमस्ते पडकजाङघ्रये ॥ कुन्ती श्रीकृष्ण द्वारा किए गये उपकारों को बार-बार याद करती है हृषिकेश ! जैसे आपने दुष्ट कंस के द्वारा कैद की हुई और चिरकाल से शोकग्रस्त देवकी की रक्षा की थी वैसे ही मेरे पुत्रों को बार-बार विपत्तियों से बचाया है। आपहीं हमारे स्वामी हैं, आप सर्वशक्तिमान् हैं। श्रीकृष्ण ! आपके द्वारा कृत उपकारों को कहां तक गिनाऊं--- १. श्रीमद्भागवत १.८.१८ २. तत्रैव १.८.२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy