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________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वगीकरण एवं वस्तु विश्लेषण ওও में ही अपनी सत्ता खोकर सफल हो जाती हैं । वेद स्तुति और भीष्म स्तुति तत्वज्ञान प्रधान हैं। ___ साधन प्रधान स्तुतियों में सम्पूर्ण वैभव, विलास को त्यागकर केवल उपास्य के चरणों में अखण्ड रति की ही कामना रहती है। पृथ, प्रह्लाद, ध्र व, अम्बरीष, ब्रह्मा, वृत्रासुर, नल-कुवर मणिग्रीव आदि की स्तुतियां साधन प्रधान है । भक्त योगसिद्धि एवं अपुनर्भव का भी त्यागकर केवल श्रीकृष्ण भक्ति की ही कामना करता है न नाक पृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम् । न योगसिद्धिरपुनर्भवं वा समञ्जस त्वा विरहय्य काङ्क्षे ॥ __ भागवतभक्त एकमात्र प्रभु की ही भक्ति को अपना सर्वस्व समझते हैं। सारी कामनाओं को त्याग देते हैं, यहां तक कि हस्तगत मुक्ति की भी उपेक्षा कर देते हैं। भक्त प्रह्लाद ब्रह्मलोक की आयु, लक्ष्मी, ऐश्वर्य, इन्द्रियभोग को त्यागकर के वल प्रभु के दासों की सन्निधि चाहता हैतस्मादभूस्तनुभृतामहमाशिषो ज्ञ आयुः श्रियं विभवमंन्द्रियमा विरिञ्चात् । नेच्छामि ते विलुलितानुरुविक्रमेण कालात्मनोपनय मां निज भृत्यपार्श्वम् ।। नल-कुवर मणिग्रीव अपना सब कुछ समर्पित कर यहीं चाहते हैं कि वाणी प्रभु के गुण कथन में, कान कथा के श्रवण में, हाथ प्रभु की सेवा में लगे रहें। सकाम स्तुतियां कामना प्रधान होती हैं । किसी प्रकार की सांसारिक कामना से प्रेरित होकर भक्तगण अपने उपास्य या प्रभु की स्तुति करते हैं । कारागार से मुक्ति के लिए, दु:खशान्ति के लिए, क्रोध निवारणार्थ, पुत्रादि की प्राप्ति के लिए स्तुतियां की जाती हैं। ऐसी स्तुतियों का श्रीमद्भागवत में बाहुल्य है। सकाम स्तुतियों को चार वर्गों में विभाजित कर सकते हैं - १. कारागार से मुक्ति के लिए दुष्टों के द्वारा कारागार में निबद्ध भक्त अपनी मुक्ति के लिए प्रभु की उपासना करते हैं । विधर्मी जरासंध के कारागार में बंधे हुए २० हजार १. श्रीमद्भागवत वेदस्तुति १०.८७.४१ २. तत्रैव ६.११.२५ ३. तत्रैव ५.१७.३ ४. तत्रैव ७.९.२४ ५. तत्रैव १०.१०.३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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