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________________ अध्याय २ : ४१ कर्म का यह सिद्धान्त संगत नहीं लगता क्योंकि संसार में धर्म करने वाले दु:खी और जो अधर्म में रहते हैं वे सुखी देखे जाते हैं। मेघ का यह तर्क नया नहीं है और व्यावहारिक धरातल पर असंगत भी नहीं है। किन्तु व्यवहार ही सब कुछ नहीं होता। इस दृष्टि से उसकी समझ सही नहीं है और उसको वास्तविक धर्म का अनुभव भी नहीं है । चीन के महान् संत लाओत्से के तीन सूत्र यहां मननीय हैं। पहला सूत्र है-"सज्जन दुर्जन का गुरु है और दुर्जन सज्जन के लिए सबक है।" दूसरा सूत्र है-जो "ताओ" (धर्म) का परित्याग करता है वह ताओ के अभाव से एकात्मक हो जाता है।" तीसरा सूत्र है-"जो सद्गुण आपको आनन्द न देता हो वह आपके लिए फोड़ा हो जाता है।" धर्म और अधर्म के परिणामों की सूक्ष्म झांकी है इसमें। "सज्जन दुर्जन का गुरु है"- यह आधा सूत्र स्पष्ट बुद्धिगम्य है किन्तु अगला नहीं। अगले को समझाने के लिए आपको दुर्जन के भीतर झांकने की जरूरत होगी। दुर्जन व्यक्ति ऊपर से कितना ही हरा-भरा, फला-फूला दिखाई दे किन्तु भीतर उसके करुण क्रन्दन, व्यथा और पीड़ा का स्वर गूंजता मिलेगा। क्योंकि वह अधर्म के पथ पर है। जो अधर्म में रत है उसे सुख कैसे मिलेगा? सुख स्वभाव में है, विभाव में नहीं। अनीति भय-मुक्त नहीं होती। जहां भय है वहां निःसन्देह संताप है। (२) दूसरे सूत्र में स्पष्ट है कि जो धर्म को छोड़ अधर्म के साथ एक होता है वह कैसे अधर्म के परिणाम से मुक्त हो सकेगा? अशांति की वर्षा उस पर अनिवार्य है। (३) तीसरे सूत्र की तुलना हम महावीर के इस सूत्र ‘ऐसोऽवि धम्मो विसओवमो'--धर्म भी विष तुल्य हो जाता है-से कर सकते हैं। जो सद्गुण-धर्म का आचरण स्वयं के आनंद के लिए न कर, कुछ पाने के लिए करता है तो वह ‘फोड़ा' (विष) हो जाता है। _ 'मलिक बिन दीवान' नाम का एक महान् साधक हुआ है। वह संपन्न था। इच्छा हुई कि मस्जिद का व्यवस्थापक बनूं। सब कुछ छोड़कर मस्जिद में बैठ गया। लोग कहने लगे-'कितना धार्मिक व्यक्ति है। दिन-रात यहीं रहता है। खुदा का दीवाना हो गया है।' एक वर्ष बीत गया, किन्तु किसी ने मस्जिद के व्यवस्थापक बनाने की बात नहीं की। आखिर सोचा-व्यर्थ एक वर्ष खोया। यदि एक वर्ष खुदा के लिए देता तो न मालूम आज कहां होता। मस्जिद छोड़ जैसे ही वह बाहर आने लगा, लोगों ने सर्व सम्मति से व्यवस्थापक बनाने का निर्णय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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