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________________ अध्याय २ : ३५ पूर्वं चिन्ता प्रयोगस्य, समये जायते भयम् । पश्चात्तापो विपाके च, मायाया अनृतस्य च ॥२५॥ २५. जो माया और असत्य का आचरण करता है, उसे उनका प्रयोग करने से पहले चिन्ता होती है, प्रयोग करते समय भय और प्रयोग करने के बाद पश्चात्ताप होता है। माया और असत्य-ये दो बड़े दोष हैं। इनके आचरण में साहस और चातुर्य की अपेक्षा रहती है। हर कोई इनका आचरण नहीं कर सकता। जो व्यक्ति इनका आचरण करता है, उसके मन में पहले चिन्ता उत्पन्न होती है। वह अपने मन में सुनियोजित योजना तैयार करता है कि मुझे वहां किस प्रकार से माया और असत्य का कथन या आचरण करना है। फिर किस प्रकार उन्हें आगे बड़ाना है; सामने वाले व्यक्ति का कैसे निग्रह करना है; माया और असत्य के कथन को सत्य साबित करने के लिए मुझे कौन-कौन-सी दूसरी माया और असत्य का सहारा लेना है'-आदि-आदि चिन्ताओं से वह ग्रस्त हो जाता है । जब वह इनका आचरण कर चुकता है तब उसका मन भय से ग्रस्त हो जाता है। उसमें यह भय रहता है कि कहीं मेरी माया और असत्य प्रकट न हो जाएं; कहीं मेरी प्रतिष्ठा नष्ट न हो जाए; कहीं मेरा बना-बनाया महल ढह न जाए। इस भय के कारण उसका मन अशान्त हो जाता है और वह सुख की नींद सो नहीं सकता। इस प्रकार वह अशान्ति का शिकार हो जाता है। ___ जब वह अपने आचरण के परिणामों पर दृष्टिपात करता है तब उसका आंतरिक मन, दूसरे के दुःख के कारण, रो पड़ता है और कभी-कभी पश्चात्ताप की आग उसमें भड़क उठती है और वह उसमें तिल-तिल कर जलता है। माया और असत्य मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के परम शत्रु हैं। एक माया और एक असत्य को सिद्ध करने के लिए प्रयोक्ता को हजार माया और हजार असत्य का सहारा लेना होता है। विषयेषु गतो द्वषं, दुःखमाप्नोति शोकवान् । द्विष्ट-चित्तो हि दुःखाना, कारणं चिनुते नवम् ॥२६॥ २६. जो विषयों से द्वेष करता है वह शोकातुर होकर दुःख पाता है। द्वेष-युक्त मन वाला व्यक्ति दुःख के नए कारणों का संचय करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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