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________________ ४२८ : सम्बोधि पृथक-पृथक् कार्य के लिए ध्यान किया जा सकता है। शांति और निष्काम के लिए श्वेत वर्णमय 'ॐ ह्री नमः का जप-ध्यान किया जाता है। ___ मुक्ति के लिए नासान पर 'ॐ अहं' इन तीनों वर्गों का ध्यान करें। आचार्य कहते हैं-इस अद्भुत मंत्र से ध्यान की परम शुद्धि प्राप्त होती है, आत्मिक सुख तथा सिद्ध जन्य अष्ट गुणों की भी। यदि संसार दुःख के अग्नि तप से वस्तुतः तू उद्विग्न है तो ‘णमो अरिहंताणं' इस संप्ताक्षर 'अर्हन्' नाम से उत्पन्न मंत्र का स्मरण कर। इस अनादि मंत्र से साधक सर्वज्ञ-वैभव, विश्व-विजय, मोक्ष और अर्हन के गुणों को उपलब्ध होते हैं। __'सोहं' का जप - 'सो' का कण्ठ चक्र पर 'हं' का आज्ञाचक्र पर और 'म्' का सहस्रार चक्र पर तीनों समय जप करना चाहिए। इससे अन्तर्मन् और सुषुप्त मन जागृत होते हैं। इस प्रकार अनेक मंत्र हैं। उन सबका उल्लेख सम्भव नहीं। साधक स्वयं अपनी रुचि के अनुसार या योग्य व्यक्ति के परामर्श से उन्हें ग्रहण करे। मन्त्र साधना की एक सरल विधि को और अपने ध्यान में रखे। वह इस प्रकार है--समय आधा घण्टे से एक घण्टे, तीनों टाईम, एकांत में । जिस मन्त्र को सिद्ध करना चाहो उसे सुनहरे प्रकाश में हृदय में लिखा हुआ देखो। उच्चारण करना चाहो तो कर सकते हो। दृष्टि लक्ष्य को न छोड़े। एक महीने के पश्चात् मन्त्राक्ष र मिटते प्रतीत होंगे, दिव्य प्रकाश कभी-कभी सन्मुख आता प्रतीत होगा। कुछ दिन बाद अक्षर लुप्त हो जायेगा, केवल हृदय तेज से भरा जान पड़ेगा। उस तेज में एक मूर्ति की झलक आती जान पड़ेगी। यह मन्त्र के देवता का रूप होता है अभ्यास से और अधिक साफ होगी। देव मूर्ति प्रत्यक्ष सामने आ खड़ी होगो। प्रश्नों का उत्तर देगी । सहयोग करेगी। अनुष्ठान पूरा हो गया। रूपस्थ ध्यान रूपस्थ ध्यान का विषय है--दृश्य पदार्थ जो रूपवान-आकृतिवान है। जिसे साकार ध्यान भी कहा गया है । दृश्य पदार्थ में ध्याता इतना एकाग्र हो जाता है कि वह द्वैत का अनुभव नहीं करता । सुकरात रात में ताराओं को देखने में इतने खो गये कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चला। लोग खोजते हुए आये और कहा कब बैठे थे, क्या देखते हो ? क्या है इनमें ? सुकरात ने कहा-क्या नहीं है इनमें ? काश आंखें होतीं देखने के लिए। लुकमान हकीम के औषधि आविष्कार वृक्षों की आत्मा के साथ तादात्म्य स्थापना की ही घटना है । वृक्ष,वायु पृथ्वी, जल, १. नमस्कार स्वाध्याय, पृ०५,६ । २. नमस्कार स्वाध्याय, पृ० १०६,१०८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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