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३७८ : सम्बोधि
जाएगा, बीमारी मिट जाएगी। तो बीमारी का होना या बीमारी का न होना या स्वस्थ होना, यह सारा रगों के आधार पर होता है।
हमारे चिंतन के साथ भी रंगों का सम्बन्ध है। मन में खराब चिंतन आता है, अनिष्ट बात उभरती है, अशुभ सोचते हैं, तब चिंतन के पुद्गल काले वर्ण के होते हैं। लेश्या कृष्ण होती है। अच्छा चिंतन करते हैं, हित-चिंतन करते हैं, शुभ सोचते हैं तब चिंतन के पुद्गल पीत वर्ण के होते हैं, पीले होते हैं । लाल वर्ण के भी हो सकते हैं और श्वेत वर्ण के भी हो सकते हैं। उस समय तेजोलेश्या होगी या पद्म लेश्या होगी या शुक्ल लेश्या होगी। बुरे चिंतन के पुद्गलों का वर्ण है काला और अच्छे पुद्गलों का वर्ण है पीला, लाल या श्वेत । कितना बड़ा सम्बन्ध है रंग का चिंतन के साथ । जिस प्रकार का चिंतन होता है उसी प्रकार का रंग होता है। __ शरीर के साथ रंग का गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के आसपास रंग का एक आभामंडल है। उसमें अनेक रंग होते हैं। किसी के आभामण्डल का रंग काला होता है, किसी के नीला और किसी के लाल और किसी के सफेद ।
अनेक वर्षों का भी होता है आभा-मंडल । आपकी आंखों को वे रंग नहीं दिखते । पर वे हैं अवश्य ही। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं होता जिसके चारों ओर आभामंडल न हो। इस का स्वयं पर भी असर होता है और दूसरों पर भी असर होता है। आप किसी व्यक्ति के पास जाकर बैठते हैं। बैठते ही आपके मन में एक परिवर्तन होता है। लगता है कि आपको अपूर्व शान्ति का अनुभव हो रहा है। आप का मन आनन्दित है और अन्दर ही अन्दर एक संगीत चल रहा है। आप किसी दूसरे व्यक्ति के पास जाकर बैठते हैं । अकारण ही उदासी छा जाती है। मन उद्विग्न हो जाता है। मन में क्षोभ और सन्ताप उत्पन्न हो जाता है। वहां से उठने की शीघ्रता होती है। यह सब क्यों होता है ? भिन्न भिन्न व्यक्तियों के पास बैठ कर हम भिन्न भिन्न भावनाओं से आक्रान्त होते हैं। यह सब क्यों और कैसे होता है ? इसका कारण है व्यक्ति-व्यक्ति का आभामंडल-आभावलय । सामने वाले व्यक्ति का जैसा आभामंडल होता है, आभा-वलय होता है, उसके रंग होते हैं, वे पास वाले व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति चाहे या न चाहे वह उन रंगों से प्रभावित अवश्य होता है। जिस व्यक्ति का आभामंढल श्वेत वर्ण का है, नीले वर्ण का है, पीले वर्ण का है, उसके पास जाकर बैठते ही मन शान्त हो जाता है। मन शान्ति से भर जाता है । उद्विग्नता मिट जाती है। प्रसन्नता से चेहरा खिल उठता है। जिसका आभामंडल विकृत है, कृष्णवर्ण के पुद्गलों से निर्मित है तो उस व्यक्ति के पास जाते ही अकारण ही चिंता उभर आती है, उदासी छा जाती है, मन उद्विग्नता से भर जाता है और ईर्ष्या, द्वेष, बुरे विचार मन में आने लगते हैं। इससे स्पष्ट है कि रंग हमें प्रभावित करते हैं।' १. युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ : मन के जीते जीत, पृष्ठ २०९-२११
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