SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ : सम्बोधि नहीं उठता। किन्तु उससे पूर्व भी यदि धार्मिक व्यक्ति दूसरों में आत्मा-परमात्मा को देखने लगे तो अनेक आन्तरिक और बाह्य समस्याएं तिरोहित हो सकती हैं. और वह व्यर्थ के क्षुद्रतम पापों से निवृत्त रह सकता है। नात्मा शब्दो न गन्धोऽसौ, रूपं स्पर्शो न वा रसः। न वर्तुलो न वात्र्यस्त्रः, सत्ताऽरूपवती ह्यसौ ॥२०॥ २०. आत्मा न शब्द है, न गन्ध है, न रूप है, न स्पर्श है, न रस है, न वर्त ल (गोलाकार) है और न त्रिकोण है । वह अमूर्त सत्ताद्रव्य है। वहदारण्य में जनक याज्ञवल्क्य से पूछता है कि आत्मा क्या है ? याज्ञवल्क्य ने कहा-- जो यह विज्ञान-स्वरूप और ज्योतिर्मय है वह आत्मा है। यह आत्मा के शुद्ध स्वरूप का निरूपण है। क्या आत्मा, शरीर, वाणी, मन, बुद्धि, आंख, नाक, कान, हाथ, पैर, मुंह आदि है ? इनके उत्तर में हम वेदों में नेति पाते हैं। ये आत्मा नहीं है। इनसे आत्मा का बोध होता है। __ आत्मा अमूर्त है। शरीर, इन्द्रिय इत्यादि मूर्त हैं। मूर्त वस्तु अमूर्त को ग्रहण नहीं कर सकती। आकार-प्रत्याकार पोद्गलिक वस्तुओं के होता है, चेतन में नहीं। आत्मा की खोज आत्मा से ही होती है। प्रश्नोपनिषद् में कहा है-'तप, ब्रह्मचर्य, श्रद्धा और विद्या से आत्मा की खोज करो। शब्दों का प्रयोग करने वाला, गंध का अनुभव करने वाला, स्पर्श और रस की अनुभूति करने वाला आत्मा है। शरीर की लम्बी-चौड़ी रचना में आत्मा का योग है। जड़ शरीर में संवर्धन की शक्ति नहीं है। आत्मा अक्षुण्ण है। उसमें घटने और बढ़ने की क्रिया नहीं होती। न पुरुषो न वापि स्वी, नवाप्यस्ति नपुंसकम् । विचित्रपरिणामेन, देहेऽसौ परिवर्तते ॥२१॥ २१. आत्मा न पुरुष है, न स्त्री है और न नपुंसक । वह विचित्र परिणतियों द्वारा शरीर में परिवर्तित होता रहता है। पुरुष, स्त्री आदि शब्दों का व्यवहार शरीर-रचना सापेक्ष है। शरीर आत्मा नहीं है किंतु आत्मा का निवासस्थान है। आत्मा विभिन्न शरीरों को धारण कर तद्रूप बन जाती है। उसे अनेक संज्ञाएं मिल जाती हैं। लेकिन आत्मा इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy