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३२६ : सम्बोधि
११. श्रमणभूत प्रतिमा ।
प्रतिमा का अर्थ है अभिग्रह - अमुक प्रकार की प्रतिज्ञा, संकल्प । उपासक की ग्यारह प्रतिमाएं हैं। उनका विवरण इस प्रकार है :
दर्शनश्रावक :
यह पहली प्रतिमा है। इसका कालमान एक मास का है। इसमें सर्वधर्म विषयक रुचि होती है, किन्तु अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का आत्मा में प्रतिष्ठापन नहीं होता । केवल सम्यग् दर्शन उपलब्ध होता है ।
कृतव्रतकर्म :
यह दूसरी प्रतिमा है । इसका कालमान दो महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का सम्यक् प्रतिष्ठापन करता है, किन्तु वह सामयिक और देशावकाशिक का अनुपालन नहीं करता ।
कृतसामायिक :
यह तीसरी प्रतिमा है । इसका कालमान तीन महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रात: और सायंकाल सामायिक और देशावकाशिक का पालन करता है, परन्तु पर्व - दिनों में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास नहीं करता ।
पौषधोपवासनिरत :
यह चौथी प्रतिमा है । इसका कालमान चार महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक चतुर्दशी, अष्टमी, अमावश्या और पूर्णमासी आदि पर्व दिनों में प्रतिपूर्ण पौषध करता है परन्तु 'एकरात्रिक उपासक प्रतिमा का अनुगमन नहीं करता ।
दिन में ब्रह्मचारी ( कायोत्सर्ग प्रतिमा)
यह पांचवी प्रतिमा है। इसका कालमान पांच महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक 'एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन करता है तथा स्नान नहीं करता, दिवाभोजी होता है, धोती
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