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अध्याय १३ : २६३
है और किसी ने कहा-यह मेरे लड़के का। लोग धिक्कारने लगे। मन ही मन कहने लगे-भगवान् यह क्या? इतने में शिष्य ने सब माया समेटी और बोलाआंखें खोलो गुरुवर ! आपका शिष्य सामने खड़ा है । आंखें खोली। न कोई आदमी, न गांव। पूछा-क्या बात है ? देव ने कहा- यह सब मैंने किया था। देर हो गयी मेरे आने में। आप समझें, स्वर्ग है, देव है, नरक है। गुरू आश्वस्त हो गए। उन्होंने अपने को साधना पथ पर पुनः अधिरूढ़ कर जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया। २ संदिग्ध और श्रद्धालु ___ भवदेव और भावदेव दो भाई थे । भवदेव बड़े थे। माता के विशुद्ध संस्कारों से संस्कारित होकर वे यौवन में साधक-संत हो गए । भावदेव जवान हुए । विवाह हुआ। पत्नी को लेकर आ रहे थे। मार्ग में भवदेव के दर्शन हुए । भाई ने नश्वरता का बोध-पाठ दिया। थोड़े से जीवन को वासना की अग्नि में भस्मसात् करना क्या उचित है ? मन तो नवोढ़ा में था, किंतु भाई से संकोचवश कुछ बोले नहीं। संन्यास ले लिया। मन बार-बार पत्नी का स्मरण करता है। वे सोचते हैं-भाई की मृत्यु हो जाये तो घर जाऊं। भाई आत्मसमाधि पूर्वक मरण को प्राप्त हुए ओर उधर भावदेव घर की ओर चल पड़ें। गांव के बाहर आकर उपाश्रय में ठहरे। लोगों से पूछा अपनी मां श्राविका रेवती के लिए। लोगों ने कहा-उसका स्वर्गवास हो गया। फिर अपनी पत्नी नागला के लिए पूछा। संयोग की बात थी कि जिसे पूछ रहे थे वह नांगला ही थी । नागला समझ गई कि मुनि का मन अस्थिर है। वे घर आना चाहते हैं। उन्हें प्रतिबोध देना चाहिए। उसने कहा-'मुनिवर ! वह अपनी 'सास' जैसी दढ़ धर्मात्मा है, तत्वज्ञा है और शीलधर्म से सुशोभित है।' मुनि ने कहा-'मैं यह नहीं पूछता । मैं तो पूछता हूं, वह है तो सही।' उत्तर देकर वह चली गयी। एक-दो बहिनों को लेकर वह वहां पुनः चली आयी, वन्दन किया और सामायिक लेकर बैठ गयी । इतने में एक छोटा बच्चा आया । वह गोद में बैठ गया और कहने लगा-'मां ! तूंने जो खीर खाने को मुझे दी थी, मैंने खाई। किंतु तत्क्षण वमन हो गया। किंतु मां ! मैंने उसे यों ही नहीं जाने दिया वमन खा लिया।' मां सरहाने लगी। भवदेव से रहा नहीं गया। उन्होंने कहा-यह क्या है तुम्हारी सामायक ? क्या सामायक में यह सब करना है ? जिस कै को कौवे, कुत्ते खाते हैं तुम उसकी प्रशंशा करती हो?' अवसर देख नागला ने कहा-'मुनिवर! आप क्या करने के लिए आये ? क्या के खाने के लिए नहीं ? जिनको त्याग दिया, फिर उस ओर मुंह करना क्या है ?' मुनि सचेत हो गए । नागला ने कहा- 'मैं ही नागला हूं। यह आपको सुस्थिर करने के लिए मैंने किया।' मुनि पुनः संयम-पथ पर आरूढ़ हो गए।
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