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________________ २७८ : सम्बोधि अपनी सीमा में खड़े मिलते हैं। हिन्दु, बौद्ध, जैन, ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख आदि का चोला जन्म के साथ धारण हो जाता है । मनुष्य में धर्म की भूख - जिज्ञासा पैदा ही नहीं होती । उससे पूर्व धर्म का भोजन उसे प्राप्त हो जाता है । सत्य का मार्ग उद्घाटित नहीं होता । सत्य की प्यास पैदा होना कठिन है और प्यास पैदा हो जाए तो फिर पानी मिलना सरल नहीं है । जीसस ने कहा है- धन्य हैं वे जिन्हें धर्म की भूख है क्योंकि उनकी भूख तृप्त हो जाएगी । " सबसे पहले यह अपेक्षित है कि व्यक्ति में धर्म की भूख जागृत हो । पाप कर्म से निवृत्त होना कठिन नहीं है जितना कि धर्म की भूख का जागरण होना है | अर्जुनयाली, अंगुलिमान, वाल्मिकी आदि प्रसिद्ध हैं जिनको धर्म की प्यास पैदा होते ही मार्ग मिला और उनके पाप छूटते चले गए । उपायान् यान् विजानीयादायुः क्षेमस्य चात्मनः । क्षिप्रमेव यतिस्तेषां शिक्षां शिक्षेत पण्डितः ॥६७॥ ६७. संयमशील पंडित अपने जीवन के कल्याणकर उपायों को जाने और उनका शीघ्र अभ्यास करे । यथा कूर्मः स्वकाङ्गानि स्वके देहे समाहरेत् । एवं पापानि मेधावी, अध्यात्मेन समाहरेत् ॥ ६८ ॥ ६८. जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को अपने शरीर में समेट लेता है उसी प्रकार मेधावी पुरुष अध्यात्म के द्वारा पापों को समेट ले । कछुए की उपमा साधक के लिए गीता, बुद्ध वचन, महावीर वाणी आदि में सर्वत्र प्रयुक्त हुई है । कछुवा भय-भीत स्थान में तत्काल अपने अंगों को समेट कर सुरक्षित हो जाता है । साधक के लिए कछुए की वृत्ति आवश्यक है । वह अपनी प्रवृत्तियों को सतत समेटे रखे । बाहर भय ही भय है। जहां भी अनुपयुक्त -- प्रमत्त हुआ कि बंधा ॥ मुक्ति के लिए अप्रमत्तता आवश्यक है । संहरेत् हस्तपादौ च मनः पंचेन्द्रियाणि च । पापकं परिणामञ्च, भाषादोषं च तादृशम् ॥६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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