SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ : सम्बोधि S को जहां कहीं भी राग और द्वेष दिखाई दे, वह तत्काल उनकी उपेक्षा कर अपने भीतर चला जाये । यह जैसे पदार्थों के साथ होता है, वैसे व्यक्ति के व्यक्तित्व, रूप, विशिष्ट कौशल आदि पर भी होता है। भिक्षु वक्कलि बुद्ध के रूप पर इतना मुग्ध हो गया, बस, उसे ही निहारता रहता । बुद्ध ने कहा- -'क्या है वक्कलि मेरे इस शरीर में ? जैसा हाड़, मांस, रक्त आदि तुम्हारे शरीर में है, वैसा ही इसमें है । रूप को देखना है, तो बुद्ध के धर्म काय का रूप देखो। जो धर्म को देखता है वह मुझे देखता है । यह भी बन्धन है । आनन्द बुद्ध से बंधे रहे । गौतम महावीर से बंधे रहे । बन्धन का मार्ग सरल है । मनुष्य बन्धन-प्रिय है । पर वह बन्धन छोड़ता है तो दूसरा कही न कहीं जोड़ लेता है । उपेक्षा करना कठिन है । उपेक्षा भावना का साधक कहीं किसी भी जड़ और चेतन के साथ बंधता नहीं । वह आने वाले समस्त बन्धनों की उपेक्षा कर तटस्थ भाव से अपने ध्येय में गति करता रहता है । अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बने । संसद में भाषण देने जब खड़े हुए, तब किसी ने व्यंग्य कसा । कहा- आपको याद है, आप चमार के लड़के हैं । लिंकन ने कहा- धन्यवाद, आपने पिता का स्मरण दिलाया और मैं आगे आपसे कहना चाहता हूं, मेरे पिताजी कुशल चमार थे। मैं इतना कुशल राष्ट्रपति नहीं बन सकूंगा। दूसरी बार फिर कहा - वे जूते बनाते थे ।' लिंकन बिल्कुल उत्तेजित नहीं हुए। उसी तटस्थ भाव से कहा - 'हां, किन्तु किसी ने कभी कोई शिकायत नहीं की। क्या आपको कोई शिकायत है ?" साधक जब उपेक्षा भावना में निष्णात हो जाता है तब हर्ष और विषाद, सुख और दुःख, सम्मान और अपमान आदि द्वन्द्व सहजतया क्षीण होते चले हैं । भावना के अभ्यास के लिए एक सहज सरल विधि का प्रयोग युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ ने इस प्रकार बतलाया है - "भावना का अभ्यास निम्न निर्दिष्ट प्रक्रिया से करना इष्ट सिद्धि में अधिक सहायक हो सकता है । साधक पद्मासन आदि किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जाए। पहले श्वास को शिथिल करे । फिर मन को शिथिल करे | पांच मिनट तक उन्हें शिथिल करने के लिए सूचना देता जाए । जब शिथिल हो जाएं तब उपशम आदि पर मन को एकाग्र करें। इस प्रकार निरन्तर आधा घंटा तक अभ्यास करने से पुराने संस्कार विलीन हो जाते हैं और नए संस्कारों का निर्माण होता है ।"" १. मनोनुशासनम्, पृ० ६४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy