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आमुख
मुमुक्षु ज्ञान और आचार के माध्यम से सत्य को प्राप्त करता है । ज्ञानशून्य आचार और आचारशून्य ज्ञान सत्य का साक्षात्कार कराने में सिद्ध नहीं होते। दोनों का योग ही साध्य का दर्शन है। आचारहीन ज्ञान निरर्थक है तो ज्ञान-रहित आचार भी विशद नहीं होता । 'जानो और तोड़ो' दोनों में ज्ञान की मुख्यता है, इसे नहीं भूलना चाहिए। बन्धन क्या है और मुक्ति क्या है, यह बोध ज्ञान से ही संभव है।
मनुष्य को बन्धन प्रिय नहीं है, प्रिय है स्वतंत्रता । स्वतंत्रता की प्राप्ति बंधनों को तोड़े बिना नहीं मिलती। बन्धन को न जानकर तोड़ने की बात असंभव है। इसलिए यहां हेय, ज्ञेय और उपादेय-तीनों का विशद दर्शन है। 'बन्धन बाधक हैं'-जब आत्मा यह जान लेती है तब उसे तोड़ने को भी प्रेरित होती है । बन्धन टूटता है, लक्ष्य उपलब्ध हो जाता है। ___ संसार में तीन प्रकार के पदार्थ होते हैं हेय, ज्ञेय और उपादेय । विश्व के सभी पदार्थ ज्ञेय हैं । जो आत्म-उत्थान में साधक होते हैं, वे उपादेय हैं और जो बाधक होते हैं वे हेय हैं। आत्म-साधना में तीनों का विवेक आवश्यक होता है। इस अध्याय में इन तीनों का विशद विवेचन है । तप क्या है, उसके कितने प्रकार है तथा ध्यान के प्रकार और द्वादश भावनाओं का भी इसमें विस्तार से वर्णन किया गया है।
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