________________
२३६ : सम्बोधि
४३. मेघ ने कहा-धर्म मनुष्यों को असत् कार्य करने से रोकता है और उन्हें सदा सत्य में प्रवृत्त करता है । धर्म तेजस्वी है और सदा जागृत रहता है , ऐसी स्थिति में उसके प्रति ग्लानि कैसे हो सकती
"भगवान् प्राह
दृष्टिः सम्यक्त्वमाप्नोति, ज्ञानं सत्यसमन्वितम् ।
आचारोऽपि समीचीनः, तदा धर्मः प्रवर्धते ॥४४॥ ४४. जब दृष्टि सम्यक् होती है, ज्ञान सही होता है और आचार समीचीन होता है, तब धर्म बढ़ता है।
दृष्टिविपर्ययं याति, ज्ञानमेति विपर्ययम् ।
आचारोऽपि विपर्यस्तः, तदा धर्मः प्रहीयते ॥४५॥ ४५. जब दृष्टि, ज्ञान और आचार विपरीत होते हैं, तब धर्म 'घटता है।
पालिर्जलस्य रक्षार्थ, पालिरक्षा प्रवर्धते । जलाभावो न चिन्त्यः स्यात्, तदा कृषिः प्रशुष्यति ॥४६॥
४६. पाल पानी की सुरक्षा के लिए होती है। जब पाल की -सुरक्षा ही मुख्य बन जाती है और जल का अभाव चिन्ता का विषय नहीं रहता, तब कृषि सूख जाती है ।
वाटिर्धान्यस्य रक्षार्थ, वाटिरक्षा प्रवर्धते ।
धान्याभावो न चिन्त्यः स्यात्, तदा कृषिविहीयते ॥४७॥ ४७. बाड़ अनाज की सुरक्षा के लिए होती है। जब बाड़ की सुरक्षा ही मुख्य बन जातो है और अनाज का अभाव चिन्ता का विषय नहीं रहता, तव कृषि क्षीण हो जाती है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org