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अध्याय ११ : २२७
साधना 'जागरिका' है। जीवन का प्रत्येक चरण जागरिकापूर्वक उठे। अन्यथा प्रमाद का नाश कठिन है। जहां प्रमाद होगा वहां दुःख भी होगा। धीर पुरुष होश का सहारा लेकर दुःखों का अन्त कर देते हैं।
यो धर्म शुद्धमाख्याति, प्रतिपूर्णमनीदृशम् । अनीदृशस्य यत्स्थानं, तस्य जन्मकथा कुतः ? ॥३०॥
३०. जो परिपूर्ण, अनुपम और शुद्ध धर्म का निरूपण करता है वह असाधारण पुरुष है । उसे ऐसा विशिष्ट स्थान मिलता है कि फिर उसके लिए जन्म-मरण का प्रश्न ही नहीं उठता।
आत्मगुप्तः सदा दान्तः, छिन्नश्रोता अनाश्रवः। स धर्म शुद्धमाख्याति, प्रतिपूर्णमनीदृशम् ॥३१॥
३१. जो आत्म-गुप्त है, सदा दान्त है, जिसने कर्म आने के स्रोतों का निरोध किया है और जो अनास्रव (आस्रव-रहित) हो गया है वह परिपूर्ण, अनुपम और शुद्ध धर्म का निरूपण करता है।
यूनान के एक महान् सन्त से किसी ने पूछा-सबसे सरल क्या है ? उसने कहा-उपदेश देना। दूसरा प्रश्न किया कि सबसे कठिन क्या है। संत ने उत्तर दिया-स्वयं को जानना । और यह बहुत ठीक है। सलाह देना, उपदेश देनायह प्रत्येक व्यक्ति के लिए सरल है। क्योंकि इसमें स्वयं को कुछ करना नहीं है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा है-कोई डुबकी लगाना नहीं चाहता । साधना नहीं, भजन नहीं, विवेक-वैराग्य नहीं, दो-चार बातें सीखली बस, लगे लेक्चर देने। जो व्यक्ति स्वयं जिस विषय में 'अ' 'आ' भी नहीं जानता वह भी दूसरों को सलाह देने में तत्पर हो जाता है। 'पिकासो' जैसे चित्रकार दुनिया में विरले हुए हैं। लेकिन लोग सलाह देने उसके पास भी पहुंच जाते थे। उसने एक 'सजेशन बाक्स'-सलाहों की पेटी बना रखी थी, जिसके नीचे कचरे की टोकरी थी। लोग आते । एक कागज पर सलाह लिखकर उस पेटी में डाल देते । पेटी के छेद से वह कागज नीचे रखी कचरे की टोकरी में चला जाता। उपदेशों के प्रभावहीन होने का कारण यह है कि व्यक्ति जैसा कहते हैं वैसा करते नहीं हैं। दूसरा कारण है -जिस विषय को स्वयं जानते नहीं हैं, उसके संबंध में कहते हैं।
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