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________________ २. अप् अर्थात् पानी है काय जिनकी वे अपकायिक जीव । ३. तैजस अर्थात् अग्नि है काय जिनकी वे तैजसकायिक जीव । ४. वायु है काय जिनकी वे वायुकायिक जीव । ५. वनस्पति है काय जिनकी वे वनस्पतिकायिक जीव | ६. सकायिक जीव - गमन - आगमन करने वाले जीव । इन्द्रियों के आधार पर जीवों के भेद : १. एक इन्द्रिय वाले जीव । २. दो इन्द्रिय वाले जीव । ३. तीन इन्द्रिय वाले जीव । ४. चार इन्द्रिय वाले जीव । ५. पांच इन्द्रिय वाले जीव । अध्याय १० : २०६ प्रहाण्या कर्मणां किञ्चिदानुपूर्व्या कदाचन । जीवाः शोधिमनुप्राप्ता, आव्रजन्ति मनुष्यतान् ॥४॥ ४. कर्मों की हानि होते-होते जीव क्रमशः विशुद्धि को प्राप्त होते हैं और विशुद्ध जीव मनुष्य-गति में जन्म लेते हैं । लब्ध्वाऽपि मानुषं जन्म, श्रुतिर्धर्मस्य दुर्लभा । यच्छ्र ुत्वा प्रतिपद्यन्ते तपः क्षान्तिर्माहंसताम् ॥५॥ ५. मनुष्य का जन्म मिलने पर भी उस धर्म की श्रुति ( सुनना ) दुर्लभ है, जिसे सुनकर लोग तप, क्षमा और अहिंसक वृत्ति को स्वीकार करते हैं । कदाचिच्छ्रवणे लब्धे, श्रद्धा परमदुर्लभा । श्रुत्वा नैयायिक मार्ग, भ्रश्यन्ति बहवो जनाः ॥६॥ ६. कदाचित् धर्म को सुनने का अवसर मिलने पर भी उस पर श्रद्धा होना अत्यन्त कठिन है । न्याय संगत मार्ग को सुनकर भी बहुत से लोग भ्रष्ट हो जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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